बंगाल के टॉप अधिकारियों की पेशी पर रोक

संदेशखाली मामले में बंगाल के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत

कोलकाता/नई दिल्ली, सूत्रकार : सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की ‘कदाचार’ संबंधी शिकायत पर लोकसभा सचिवालय की विशेषाधिकार समिति द्वारा राज्य के मुख्य सचिव भगवती प्रसाद गोपालिका और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कुमार सहित अन्य के खिलाफ जारी नोटिस पर सोमवार को रोक लगा दी। पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के हिंसा प्रभावित संदेशखाली जाने से रोकने पर बीजेपी कार्यकर्ताओं की पुलिस कर्मियों से झड़प हो गयी थी, जिसमें मजूमदार को चोटें आई थीं। सुकांत को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने पश्चिम बंगाल के अधिकारियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर संज्ञान लेते हुए सुबह साढ़े 10 बजे उनकी (अधिकारियों की) उपस्थिति के लिए जारी नोटिस पर रोक लगा दी। लोकसभा सचिवालय की ओर से पेश अधिवक्ता ने शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाने के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि यह विशेषाधिकार समिति की पहली बैठक है। वकील ने कहा कि उन पर कोई आरोप नहीं लगाया जा रहा। यह एक नियमित प्रक्रिया है। एक बार जब कोई सांसद नोटिस भेजता है और अध्यक्ष को लगता है कि मामले पर गौर करने लायक कुछ है तो नोटिस जारी किया जाता है।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव भगवती प्रसाद गोपालिका और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कुमार को लोकसभा सचिवालय ने सोमवार को पेश होने के लिए नोटिस जारी किया था। पीठ ने लोकसभा सचिवालय और अन्य को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा और इस बीच निचले सदन की समिति की कार्यवाही पर रोक लगा दी। गौरतलब है कि इस नोटिस के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरावाजा खटखटाया था। सोमवार को चली घंटों सुनवाई के बाद यह फैसला दिया गया।

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं की मामले पर तत्काल सुनवाई की अर्जी पर संज्ञान लेते हुए पश्चिम बंगाल के अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई की। सिब्बल ने कहा कि किसी सांसद को संसदीय विशेषाधिकार राजनीतिक गतिविधियों के लिए नहीं दिया गया और इसे केवल तभी लागू किया जा सकता है जब सदन में भाग लेने के दौरान एक सांसद को उसके कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा पहुंचाई जाती है। उन्होंने कहा कि संदेशखाली क्षेत्र में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू है और भाजपा सांसद व उनके समर्थकों ने उसका उल्लंघन किया था।

सिब्बल ने सांसद द्वारा पुलिस अत्याचार की शिकायत को झूठा करार दिया और कहा कि वह (कपिल सिब्बल) भी ऐसे वीडियो पेश कर सकते हैं, जिसमें भाजपा कार्यकर्ता पुलिस अधिकारियों पर हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं। दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने कहा कि लोकसभा सचिवालय ने जिन अधिकारियों को तलब किया है, वे कथित घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे।

भाजपा सांसद ने 15 फरवरी को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके तुरंत बाद नोटिस जारी किए गए। सिंघवी ने कहा, विशेषाधिकार, एक सांसद के रूप में आपके काम की रक्षा के लिए हैं, नहीं तो हर मामले में विशेषाधिकार का उल्लंघन होगा इसलिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। पीठ ने पूछा कि क्या नोटिस इसलिये जारी किये गये क्योंकि सांसद घायल हो गये? अधिवक्ता ने अदालत को बताया, वीडियो में वह (सांसद) पुलिस की गाड़ी के बोनट पर कूदते हुए दि‍खाई दे रहे हैं।

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