चाइबासा डीडीसी के जाति पर विवादास्पद सवाल खड़ा किए बेसरा

*तीस साल पूर्व आदेश जारी किया था कोर्ट ने

*कोर्ट का फैसला आने के बाद नौकरी में आए है डीडीसी

रांची : विवादास्पद बयान खड़ा करने वाले पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने फिर एक सवाल खड़ा किया है। इस बार श्री बेसरा ने चाइबासा डीडीसी संदीप बख्शी के जाति पर सवाल उठाया है, जबकि इस मामले में  हाई कोर्ट ने श्री बख्शी के पक्ष में तीस साल पहले फैसला जारी कर दिया था। फैसला आने के बाद श्री बख्सी नौकरी में आये थे।

 

श्री बेसरा ने झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिखा :

वर्ष 1993 में पटना उच्च न्यायालय के रांची बेंच में दो न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा जारी आदेश के आलोक में निर्गत पश्चिमी सिंहभूम के उप विकास आयुक्त संदीप बख्शी के जाति प्रमाण पत्र को 30 वर्षों के बाद जाली बताने का काम पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा द्वारा किया जा रहा है, जबकि उच्च न्यायालय के दो सदस्यीय खंडपीठ के आदेश से वर्ष 1993 में जारी आदेश से रांची के डीसी ने डीडीसी का जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया था। उस समय कोई विरोध नेताओं या सरकार की ओर से नहीं हुआ। अब 30 वर्षों के बाद इसे फर्जी बताया जा रहा है। श्री बेसरा ने झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर कहा है कि उप विकास आयुक्त जाली जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं। उन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय. इसके पहले आजसू नेता रामलाल मुंडा और जदयू नेता विश्राम मुंडा ने मुख्यमंत्री समेत कई लोगों को पत्र लिख कर उप विकास आयुक्त का जाति प्रमाण पत्र जाली और फर्जी होने का आरोप लगा चुके हैं। इसके पहले 2021 में यह मामला उछला था जिसमें कोर्ट के फैसले का हवाला देकर फाइल को बंद कर दिया गया था . हालांकि वर्ष 2021 में इस मामले को उछालने पर मानकी मुंडा संघ सहित कई संगठनों ने इसके पीछे विकास योजनाओं के बिचौलियों का हाथ बताया था।इस मामले में उप विकास आयुक्त ने कोई ठोस टिप्पणी करने से इनकार किया और कहा कि उनके नौकरी में आने से पहले वर्ष 1993 में पटना हाई कोर्ट की रांची बेंच के दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने उन्हें जाति प्रमाणपत्र निर्गत करने का आदेश दिया था,जिसके आलोक में उन्हें अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया गया है।

 

क्या है डीडीसी के जाति प्रमाणपत्र का मामला :

संदीप बख्शी ने अपने जाति प्रमाण पत्र को पटना हाई कोर्ट में 1992 में में एक याचिका दायर किया था , जिसका सीडब्ल्यूजेसी संख्या 3357 / 1992 था। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश बीएन अग्रवाल और न्यायाधीश एन राय ने मार्च 1993 में रांची के उपायुक्त को 2 माह के अंदर श्री बख्शी के पक्ष में जाति प्रमाणपत्र निर्गत करने का आदेश दिया। जिस पर उन्हें अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाणपत्र निर्गत किया गया।

 

क्या है प्रावधान :

सुप्रीम कोर्ट के फुल बेंच का निर्णय है कि यदि किसी बच्चे की मां अनुसूचित जनजाति की और पिता सामान्य जाति का होगा एवं बच्चे का लालन-पालन उसके मां के परिवेश में होता है और मां की कम्युनिटी बच्चे को अपनी कम्युनिटी का मानती है, तो उसे मां की कम्युनिटी का प्रमाण पत्र देय होगा। इस मामले में झारखंड समेत देश के कई हिस्से में लोगों को प्रमाण पत्र निर्गत भी किया जा चुका है। वर्ष 2021 में जब यह मामला उठा तो मानकी मुंडा समेत कई संगठनों ने बिचौलियों के द्वारा यह मामला उठाने की बात कही थी। बहरहाल अब देखना यह है कि पुर्व विधायक श्री बेसरा के पत्र पर मुख्य सचिव क्या फैसला लेते हैं.

 

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