भारत की सही राह

दुनिया की गुटबंदी से दूर भारत ने कुछ समान विचारधारा वाले मित्र देशों को साथ लेकर निर्गुट आंदोलन चलाया। और यह भी सही है कि उसके बाद से दिल्ली में चाहे जिस किसी दल की सरकार रही हो, भारत की विदेश नीति में या पड़ोसियों के प्रति व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आई।

भारतीय लोकतंत्र के बारे में दुनिया चाहे जो भी गिले-शिकवे करती रही हो लेकिन तमाम देशों को यह मानना ही पड़ता है कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ें काफी मंजूर हैं। यही वजह है कि तमाम मत विरोधों के बावजूद जब बात देश की आती है तो सारे दल एक ही आवाज में बोलने लगते हैं। यही है भारत की राष्ट्रीय एकता। इसी लोकतांत्रिक अवधारणा के तहत शीतयुद्ध के दौरान भारत के तत्कालीन नीति निर्धारकों ने अमेरिका और रूस दोनों ही ताकतवर देशों से अलग अपना एक नया मोर्चा बनाया था जिसे निर्गुट कहा जाता है।

ओछी सोच से कोई मतलब नहीं

दुनिया की गुटबंदी से दूर भारत ने कुछ समान विचारधारा वाले मित्र देशों को साथ लेकर निर्गुट आंदोलन चलाया। और यह भी सही है कि उसके बाद से दिल्ली में चाहे जिस किसी दल की सरकार रही हो, भारत की विदेश नीति में या पड़ोसियों के प्रति व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आई। भारत ने कभी किसी दूसरे देश पर किसी तरह का राजनीतिक या आर्थिक दबाव बनाने की नहीं सोची। सबसे अहम यह है कि किसी भी देश पर पहले आक्रमण करने की नीति भी भारत की नहीं रही। इसे लेकर हो सकता है कि कुछ पड़ोसियों के मन में भारत को कमजोर समझने का मुगालता भी पलता रहा हो, लेकिन नई दिल्ली में बैठी सरकारों को किसी भी देश की किसी ओछी सोच से कोई मतलब नहीं रहा है।

मगर तटस्थ रहना भी कभी-कभार घातक साबित होता है। जब सहनशीलता की सीमा पार होने लगे तो प्रतिक्रिया देनी ही पड़ती है। भारत ने समय-समय पर यही काम किया है। इससे तथाकथित कुछ ताकतवर देशों को नाराजगी भी होती रही है। ताजा घटना में बांग्लादेश में चुनाव का उल्लेख किया जा सकता है। अमेरिका की ओर से बांग्लादेश पर बार-बार इस बात का दबाव बनाया जा रहा था कि वहां सही समय पर आम चुनाव कराए जाएं तथा चुनाव प्रक्रिया भी वैध ही होनी चाहिए। इसे लेकर बांग्लादेश के शासक दल अवामी लीग के नेताओं में काफी व्याकुलता देखी जा सकती थी।

मित्रवत संबंध रखने की मंशा

अमेरिकी रुख से ढाका की सरकार के विपक्ष में बैठी बीएनपी के नेताओं को काफी खुशी हो रही थी। लेकिन भारत को लगा कि अमेरिका भले ही भारत के साथ मित्रवत संबंध रखने की मंशा जाहिर करता हो, वह भले ही भारत का तथाकथित हमदर्द बनने का दिखावा करता रहा हो- किंतु दुनिया के किसी भी देश की आंतरिक समस्याओं में उसे ताकने-झांकने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। यही वजह रही कि भारत ने अमेरिका को साफ तौर पर बता दिया है कि बांग्लादेश में चुनाव कब, कैसे और किन हालातों में कराए जाएंगे, इसका फैसला किसी बाहरी देश को नहीं करना चाहिए।

आखिर बांग्लादेश भी प्रभुसत्ता संपन्न एक स्वाधीन देश है। यदि वहां किसी तरह की चुनावी धांधली होती है या किसी विरोधी के साथ अन्याय किया जाता है तो वहां की सुप्रीम कोर्ट में उसका फैसला हो सकता है। इस मामले में अमेरिका या किसी भी दूसरे देश को नाक गलाने की जरूरत नहीं है। बांग्लादेश की सरकार ने भी भारत के इस रुख का अनुमोदन किया है तथा नई दिल्ली को साधुवाद दिया है। स्मरण रहे कि किसी भी मुल्क के आंतरिक मामलों में यदि किसी को पंच बनाकर जबरदस्ती लाया गया तो उसका हश्र बुरा ही होने वाला है। भारत ने अपनी तयशुदा नीतियों के अनुरूप ही काम किया है। इस सोच के लिए विदेश मंत्रालय को साधुवाद।

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