छोटी सोच से परहेज

अदालत की बात से असहमत याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया है। उसने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की है कि वह भारत सरकार को निर्देश दे कि वह किसी भी पाकिस्तानी कलाकार को भारत की किसी कंपनी में, थिएटर में या किसी फर्म में काम करने पर प्रतिबंध लगाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने याचिका की सुनवाई के दौरान साफ कर दिया है कि छोटी सोच से बचने की जरूरत है।

भारत की शीर्ष अदालत ने एक कलाकार से कहा है कि उन्हें छोटी सोच से परहेज होनी चाहिए क्योंकि वे एक कलाकार हैं। कला किसी परिधि को नहीं मानती। कला इंसान को इंसान से जोड़ने वाली वह विधा है जिसके जरिए दो अजनबी आपस में भावनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं। मुद्दा यह तब उछला है जब एक भारतीय कलाकार ने अतीत के कुछ उदाहरणों के आलोक में अदालत में याचिका लगाई थी कि भारत सरकार किसी भी पाकिस्तानी कलाकार के भारत में काम करने पर रोक लगाए। पहले इस मामले की सुनवाई बंबई हाईकोर्ट में हुई। बंबई हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि कलाकारों को किसी भी सूरत में प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। यहां नाटक या रंगमंच के लोग हों या अभिनेता, गायक अथवा किसी भी कला से जुड़े लोग- ये किसी देश की सीमाओं में नहीं बाँधे जा सकते।

अदालत की बात से असहमत याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया है। उसने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की है कि वह भारत सरकार को निर्देश दे कि वह किसी भी पाकिस्तानी कलाकार को भारत की किसी कंपनी में, थिएटर में या किसी फर्म में काम करने पर प्रतिबंध लगाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने याचिका की सुनवाई के दौरान साफ कर दिया है कि छोटी सोच से बचने की जरूरत है। अदालत ने यह भी कहा है कि अपना देश प्रेम जाहिर करने के लिए जरूरी नहीं है कि किसी विदेशी को गाली दी जाए या अपमानित किया जाए।

अदालत की राय का स्वागत किया जाना चाहिए। आज पाकिस्तान भले ही दोस्ती की आड़ में भारत की पीठ में चाकू मारने की कोशिश करता रहा है लेकिन हकीकत यही है कि भारत और पाकिस्तान की नींव एक ही रही है। दोनों मुल्कों की तहजीब एक जैसी रही है। दोनों ओर की भावनाएं एक रही हैं। सीमा के दोनों ओर मीर और गालिब की समान रूप से इज्जत होती है। दोनों देशों का संगीत भारतीय मूल से ही जुड़ा है। सरहद के दोनों ओर सरगम के सुर एक ही हैं। दोनों मुल्कों के पुरखे भी एक ही रहे हैं। ऐसे में किसी कलाकार को उसकी राष्ट्रीय़ता के आधार पर भारत में प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51 भी यही सिखलाता है। ऐसा माना जाता है कि खिलाड़ियों, कलाकारों, फनकारों या विद्वानों की कोई सरहद नहीं हुआ करती। दोनों मुल्कों में दूरियां बनाने वाले सियासतदान रहे हैं। आज भी पंजाब या बंगाल की सीमा पर मौजूद गांवों में ज्यादातर ऐसे लोग हैं जिनके रिश्तेदार सीमा के उस पार रहा करते हैं। ऐसे में राष्ट्रीयता के आधार पर किसी पर बैन नहीं लगाया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की उस बात को भी पूरा खारिज नहीं किया जा सकता जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान से आने वाले कलाकार भारत में पैसे कमाने के बाद अपने वतन लौट कर भारत के खिलाफ ही जहर उगलने लगते हैं।

हो सकता है कि यह सही भी हो मगर इसके बावजूद यही कहा जाएगा कि भारतीय संस्कृति इतनी संकीर्ण नहीं है। सदियों से भारत वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को मानता रहा है और यही सोच भारतीयता की परिचायक है। ऐसे में पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर रोक लगाने की याचिका को ठुकरा कर सुप्रीम कोर्ट ने सही फैसला किया है।

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