झारखंड पुनरूत्थान अभियान के संयोजक ने सरकार से सात सूत्री की मांग की 

संतोष वर्मा

चाईबासा : झारखंड पुनरूत्थान अभियान के संयोजक सन्नी सिंकु ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईचा खड़कई बांध शीघ्र रद्द करने के लिए सात सूत्री मांग पत्र ट्वीट कर प्रेषित की है। सात सूत्री मांग पत्र में विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे तो कोल्हान प्रमंडल से तीन मुख्यमंत्री हुए। पर वे इस विनाशकारी बांध से लाखों आदिवासी मूलवासियों की विस्थापन की दर्द को संभवत: नहीं अनुभव कर पाए। झारखण्ड पुनरूत्थान अभियान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से इसलिए उम्मीद रखती है।क्योंकि झामुमो ने इस बहुद्देशीय बांध के खिलाफ शुरुवाती दौर से विरोध करते आई है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण 80 के दशक में गंगाराम कालुंडिया की बिहार पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या करना। सेना से वापसी करने के बाद जब गंगाराम कालुंडिया ने देखा कि इस बांध के निर्माण होने से लाखों आदिवासी मूलवासी की भूमि,भाषा, सामाजिक,पारंपरिक,आजीविका, दस्तुर, देशाउली, जहेरतान , मसना, ससनदिरी,चारागाह सहित सभी वन्य प्राणी भी समूल रूप से नाश हो जाएगा। तब इसका विरोध करना शुरू किया था। गंगाराम कालुंडिया की हत्या होने के पूर्व मार्च 1982 को झामुमो के कद्दावर नेता रहे पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो और पूर्व विधायक बहादुर उरांव,पूर्व विधायक स्व:राधे सुंबरूई,शहीद मछुआ गगराई,शहीद देवेंद्र मांझी और अन्य नेताओं के प्रयास से चाईबासा में ईचा खड़कई बांध के विरोध में एक प्रतिरोध सभा का आयोजन किया था। जिस सभा में झामुमो के केंद्रीय नेतृत्वकारी शामिल हुए थे। तब से उल्लेखित बांध का विरोध जारी है।जिसके कारण अब तक बहुद्देशीय बांध का निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हो पाया है। झारखंड राज्य बनने के बाद किसी भी सरकार ने इस बांध की ओर ध्यान नहीं दिया। आदिवासी मूलवासियों की विवाशी से सभी सरकार मुंह मूढ़ता रहा। जब 2013 में राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन ने शपथ ग्रहण की थी। तब 2014 में उन्होंने ईचा खड़कई बांध के बारे में प्रभावित गांव के ग्रामीणों से राय जानने के लिए जनजाति सलाहकार परिषद की उप समिति का गठन किया था। जिस उपसमिति के अध्यक्ष तत्कालीन और वर्तमान आदिवासी कल्याण मंत्री चंपई सोरेन को मनोनीत किया गया था। जबकि तत्कालीन और वर्तमान सदर चाईबासा विधायक दीपक बिरूआ और तत्कालीन जगन्नाथपुर विधायक और वर्तमान सिंहभूम संसदीय क्षेत्र की सांसद गीता कोड़ा को सदस्य मनोनीत किया गया था। उक्त गठित टी ए सी की उपसमिति ने कुजू, कुईडबुसु और तातनगर हाट बाजार में ग्राम सभा आयोजित की थी। टी ए सी आयोजित ग्राम सभा में हजारों,हजार ग्रामीणों ने भाग लिया था। और ग्रामीणों ने ईचा खड़कई बांध के खिलाफ हाथ उठाकर ग्राम सभा में एक स्वर से पारित किया था। टी ए सी की उपसमिति ने ग्रामीणों द्वारा पारित ग्राम सभा की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। पर 2014 की विधानसभा चुनाव में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को जनादेश मिलने के कारण फिर बांध का मसला मंद पड़ गया था। लेकिन प्रमुख विपक्षी दल झामुमो ने फिर विधानसभा के पटल पर उल्लेखित बांध के खिलाफ जोरदार आवाज बुलंद की तो पक्ष विपक्ष के बीच गरमागरम बहस भी हुई। इतना ही में झामुमो नहीं रुका 11 मार्च 2016 को राजभवन के सामने धरना प्रदर्शन भी आयोजित की थी। जिसमें राज्यपाल को मांग पत्र सौंपने के बाद हेमंत सोरेन ने आदिवासी मूलवासियों की विनाशकारी बांध को शीघ्र निरस्त करने की मांग की थी। फिर 2019 की विधानसभा चुनाव का समय आया। झामुमो ने अपने घोषणा या संकल्प पत्र में ईचा बांध की मुद्दा को शामिल किया। जिसमें उल्लेख की गई थी कि महागठबंधन की सरकार बनी तो उपरोक उल्लेखित बांध को रद्द कर दिया जाएगा। पर अब तक सरकार की ओर से इस बांध को रद्द करने की कार्रवाई नहीं हुई है। इसलिए झारखण्ड पुनरूत्थान अभियान की ओर से मुख्यमंत्री को मांग पत्र प्रेषित की गई है। सरकार का कार्यकाल डेढ़ साल के लगभग बची है। बांध को रद्द करने की कार्रवाई जल्द से जल्द की जाय।

 

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आगे मांग पत्र में सन्नी सिंकु ने उल्लेख किया है कि ईचा खड़कई बांध निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण का कार्य 1894 की भूमि कानून के अनुसार हुआ था। जबकि उल्लेखित भूमि कानून का संशोधन 2013 में हो गई है। जिसे अब भूमि अधिकार अधिनियम 2013 हो गया है। ऐसे परिस्थिति में रैयती भूमि स्वाभाविक रूप से अब रैयतों के हित में परिवर्तित हो गई है। जिसका उल्लेख तत्कालीन जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव सुखदेव सिंह ने सवाल के जवाब में यह बात कही थी। बांध निर्माण के लिए अब सरकार को फिर से निविदा आमंत्रित करना होगा।और 2013 के भूमि अधिकार अधिनियम के आधार पर रैयती भूमि का अधिग्रहण किया जा सकता है। उल्लेखित अधिनियम में किसी भी रैयती भूमि का अधिग्रहण करने के पहले आजीविका और खाद्य सुरक्षा कानून की पहलू को जानने के लिए ही 80 और 70 प्रतिशत ग्रामसभा की सहमति को आवश्यक माना गया है। जबकि 2014 में ही बांध से विस्थापित होने वाले ग्रामीणों ने ग्राम सभा में पारित कर चुका है कि यह विनाशकारी बांध रद्द की जाय। साथ ही जिन जिला के भौगोलिक भूभाग में यह बांध निर्माणाधीन है। यह अनुसूचित जिला है। और अंग्रेजी राजव्यवस्था के समय में इस क्षेत्र को नॉन रेगुलेशन एरिया घोषित किया गया था। जिसके तहत कोल्हान में आज भी पारंपरिक मानकी मुंडा स्वशासन प्रणाली जीवित है। इसे 1908 की सीएनटी एक्ट के रिकॉर्ड ऑफ राइट में शामिल किया गया है।साथ ही हेमंत सोरेन की सरकार ने ही कोल्हान कोर्ट में भूमि विवाद की त्वरित निष्पादन करने के लिए न्याय पंच का गठन किया है। इस प्रकार जब यह क्षेत्र अनुसूचित क्षेत्र के अंतर्गत आता है। पेसा कानून लागू है। मानकी मुंडा पारंपरिक प्रथा लागू है। संवैधानिक प्रावधान के तहत ग्रामसभा को लोकसभा और विधानसभा के तर्ज पर गांव के मामले में शक्ति प्रदान की गई है। मुख्यमंत्री जनजाति सलाहकार परिषद के अध्यक्ष है। जिनका काम आदिवासियों की सरंक्षण और संवर्धन करने की जिम्मेदारी है। तो देर किस बात की। सिर्फ आदिवासी होने के नाते एक बार आदिवसियत की स्वाभिमान जगा लीजिए और विनाशकारी ईचा खड़कई बांध को सुसंगत कानून के तहत आदिवासी मूलवासियों के हित में रद्द कर दीजिए। यही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से झारखंड पुनरूत्थान अभियान विनम्रतापूर्वक मांग करती है।