देवघर बाबा मंदिर इसके लिए भी है सुविख्यात

रांची : भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक देवघर के बाबा वैद्यनाथधाम में है. इस ज्योतिर्लिंग की कहानी त्रेतायुग में रावण से जुड़ी हुई है, जिसकी बड़ी महिमा है. इसी ज्योतिर्लिंग की पूजा से जुड़ा है गठजोड़वा अनुष्ठान जिसके लिए देश भर के श्रद्धालु खिंचे चले आते हैं. तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि इस मंदिर में लंबे समय से किए जा रहे इस धार्मिक अनुष्ठान को यहां आने वाला हर भक्त करना चाहता है, क्योंकि इस गठबंधन या गठजोड़वा अनुष्ठान को करने से सारी मनोकामना पूर्ण होती है.

बाबा वैद्यनाथ मंदिर के शिखर से लेकर मां पार्वती के शिखर तक को बंधन को गठबंधन या गठजोड़वा कहते हैं. देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ धाम में कई परंपरा प्रचलित है. इन्हीं में से एक है बाबा भोलेनाथ के मंदिर और मां पार्वती के मंदिर के शिखर को पवित्र धागों से बांधकर गठजोड़ करने की परंपरा. इस परंपरा को शिव और शक्ति का गठजोड़ या गठबंधन कहते हैं. मुगल काल के पहले से चली आ रही इस परंपरा में दिलचस्प ये है कि गठबंधन में दोनों मंदिरों के शिखरों के बीच लाल कपड़ा बांधने का हक यहां रहने वाले एक खास परिवार को ही है.

यहां आने वाले श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर शिव-पार्वती का गठबंधन कराते हैं. इसके लिए श्रद्धालु विधि-विधान से शिव-पार्वती की पूजा कर लाल कपड़ा का संकल्प कराते हैं. इसी वस्त्र को दोनों मंदिरों के शिखर के बीच बांधा जाता है. दोनों शिखर के पंचशूल में लाल रज्जू बांधने की धार्मिक परंपरा को गठबंधन अथवा गठजोड़ कहा जाता है. यह अनुष्ठान सिर्फ बाबा वैद्यनाथ धाम स्थित इसी ज्योर्तिलिंग में ही होता है, ऐसा कहा जाता है.की गठबंधन अनुष्ठान विवाहित जोड़ों के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.

हिंदू संस्कारों में विवाह के मौके पर रक्षासूत्र बांधने की परंपरा है. मान्यता है कि इस बंधन से वर-वधू हर संकट से मुक्त रहते हैं. यही परंपरा यहां शिव-पार्वती के साथ भी निभायी जाती है. मान्यता है कि यहां गठबंधन कराने वाले दंपति संकटमुक्त जीवन यापन करते हैं और उन्हें शिव-पार्वती का असीम आशीष प्राप्त होता है. उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय और सुरक्षित होता है. यही कारण है कि इस वर्ष श्रावणी मेले में उमड़ी भीड़ के बावजूद श्रद्धालु इस अनुष्ठान को पूरा कर रहे हैं.

 

 

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