ईयू की चिंता का मतलब

यूरोपीय संघ या यूरोपियन यूनियन (ईयू) को आजकल भारत की समस्याओं से बड़ी चिंता हो रही है। इसके लिए बाकायदा ईयू ने एक प्रस्ताव भी पारित कर लिया है जिसमें मणिपुर में हो रही हिंसा को शांत करने की बात कही गई है। भारत की अंदरूनी घटना पर विश्वबिरादरी की चिंता के लिए ईयू को धन्यवाद दिया जाना चाहिए। कम से कम उन्हें इस बात का ख्याल तो है कि भारत के एक अंग राज्य में आम लोगों के साथ बुरा बर्ताव किया जा रहा है। लेकिन ईयू ने यह नहीं बताया कि आखिर यह बर्ताव किससे और कौन कर रहा है। यूरोपीय संघ को इस बात की चिंता तब नहीं हुई थी जब यूक्रेन में रूसी फौजों के हाथों निरीह लोगों की हत्याएं हो रही थीं। आज भी यूक्रेन में लगातार खून की होली खेली जा रही है। यूरोप इस होली को बढ़ावा देने का काम कर रहा है। नेटो के नाम पर विश्व के ज्यादातर देशों में नरमेध कराने वाले लोगों को मणिपुर पर चिंतित होते देख कर आश्चर्य होता है।

पूछा जा सकता है कि अमेरिका ने जिस हाल में सीरिया और इराक को छोड़ा है, अफगानिस्तान को जहां पहुंचा दिया है- इसके लिए कोई प्रस्ताव पारित किया गया क्या। मणिपुर की हिंसा किसी राज्य या राष्ट्र द्वारा प्रायोजित हिंसा नहीं है। यह भारत की अंदरूनी समस्या है और भारत अपनी समस्याएं सुलझाने में सक्षम है। यह सही है कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य के लोगों का लंबे समय तक विदेशी ताकतों द्वारा ब्रेनवाश किया जाता रहा है।

कुछ समय पहले तक पूर्वोत्तर के राज्यों में खुद को अलग देश मानने की सोच पनपती रही है। इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि भारत किन राज्यों में आफस्पा लागू करेगा, किन हालातों में इसमें ढील दी जानी चाहिए तथा मणिपुरी जनता के साथ किस तरह का संवाद किया जाना चाहिए, यह सबकुछ भारत सरकार या मणिपुर सरकार का काम है। इससे दुनिया के बाकी देशों को चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है।

इसी प्रसंग में राहुल गांधी का नाम भी अब उछला है। राहुल ने भी ईयू में मणिपुर पर लिए गए प्रस्ताव पर टिप्पणी की है। इससे घरेलू सियासत में नई उबाल देखी जा सकती है। राहुल के सवालों पर भाजपा की ओर से स्मृति ईरानी ने भी पलटवार किया है। लेकिन कांग्रेस या भाजपा दोनों को ही फिलहाल इस मसले पर संयम बरतने की सलाह दी जानी चाहिए। मणिपुर का मामला लगातार गंभीर होता जा रहा है। इसमें किसी विदेशी ताकत के शामिल होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। फिलहाल भारत सरकार की ओर से लगातार मणिपुर में लोगों को आश्वस्त करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन जिस तरह की सक्रियता ईयू की ओर से दिखाई जा रही है, उससे यही लगता है कि जानबूझकर भारत के मामले में दखलंदाजी करने की कोशिश हो रही है।

ज्ञात रहे कि इससे पहले भी कई बार भारत-पाक मामलों में दुनिया के तथाकथित कई ताकतवर देशों की ओर से मध्यस्थता का प्रस्ताव आता रहा है जिसे भारत सिरे ठुकराता भी रहा है। इसके बावजूद अब यूरोपीय यूनियन ने भारत के मामले पर चिंता जताई है जिसे किसी विदेशी का भारत के बारे में निर्लज्ज प्रयास ही कहा जा सकता है। दुनिया यह कान खोलकर सुन ले, भारत एक संप्रभुता संपन्न स्वतंत्र देश है तथा इसे अपने घर और बाहर की सुरक्षा करने की कला बखूबी आती है। दूसरों के पेट में मरोड़ न हो तो ज्यादा बेहतर है।

EDITORIALअमेरिकाअशोक पांडेयभारत सरकारमणिपुर हिंसायूरोपीय संघराहुल गांधीसंपादकीय