नाहक नाटक नाम का

इंडिया नाम से यदि किसी राजनीतिक गठबंधन का नाम रख ही लिया जाए तो इससे देश को नुकसान क्या है। इस नाम पर किसी ने पेटेंट तो कराया नहीं है। न इस नाम से विपक्ष को बहुत कुछ हासिल हो जाएगा तथा ना ही सत्तापक्ष का इससे कुछ खो जाएगा।

अक्सर कुछ लोग कहा करते हैं कि नाम में क्या रखा है जबकि दूसरी ओर कुछ लोग मानते हैं कि नाम का भी काफी असर पड़ता है। मतलब यह कि नाम सिर्फ नाम ही नहीं, वह कई बार लोगों को नामचीन बनाता है, गुमनाम भी बना दिया करता है। बहरहाल, भारत में आजकल एक नाम पर खूब चर्चा हो रही है। नाम है आईएनडीआईए अर्थात इं.डि.या। साफ कहा जाए तो वह नाम है इंडिया। केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए की सरकार के विरुद्ध तमाम भाजपा विरोधी दलों के नए गठबंधन का नाम दिया गया है इंडिया। इस नाम पर अब विवाद शुरू हो गया है।

विवाद यूं कि खुद प्रधानमंत्री ने अपने सांसदों के संबोधन में कह दिया है कि इंडिया का नाम जोड़ लेने से ही कुछ नहीं होता। उन्होंने बाकायदा कई आतंकी संगठनों के नाम भी इंडिया से जुड़े होने का उदाहरण दे दिया। इससे विपक्ष के लोगों में खुशी भी है, गुस्सा भी। खुशी इस बात की है कि पीएम मोदी ने चिढ़ कर इंडिया शब्द का आतंकियों के लिए इस्तेमाल किया है जिसका राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है। कई दलों की ओर से कहा भी जा रहा है कि प्रधानमंत्री ने विपक्ष का विरोध करते-करते भारत यानी इंडिया का ही विरोध कर दिया है। इससे विपक्ष को सरकार के खिलाफ थोड़ी ताकत मिली है और इसका नतीजा भी संसद में देखा जा रहा है।

जनता को बेवकूफ समझने की गलती

इंडिया नाम से यदि किसी राजनीतिक गठबंधन का नाम रख ही लिया जाए तो इससे देश को नुकसान क्या है। इस नाम पर किसी ने पेटेंट तो कराया नहीं है। न इस नाम से विपक्ष को बहुत कुछ हासिल हो जाएगा तथा ना ही सत्तापक्ष का इससे कुछ खो जाएगा। देश की जनता को बेवकूफ समझने की गलती हर बार राजनेता किया करते हैं लेकिन अमूमन ऐसा है नहीं। किसी का कुछ भी नाम हो जनता उसके काम की समीक्षा करती है। और जाहिर है कि अगले लोकसभा चुनाव में भी काम की ही समीक्षा की जाएगी। ऐसे में इंडिया नामक सियासी गठबंधन में कौन-कौन से लोग हैं, उनका इतिहास कैसा रहा है, इसके बारे में देश के लोगों को पता है।

बेहतर यही है कि इस नाम को निशाना नहीं बनाया जाए क्योंकि नहीं चाहकर भी इस देश को कुछ लोग भारतवर्ष के नाम से यदि पुकारते हैं तो कुछ लोग हिंदुस्तान कहते हैं, कुछेक लोगों की बोली में आर्यावर्त कहा जाता है जबकि दुनिया के ज्यादातर हिस्से में भारत का नाम इंडिया ही है।

निदान तलाशने का समय

अच्छा होता कि इस पचड़े में नहीं पड़कर देश की मौजूदा समस्याओं का समाधान किया जाता। गरीबी और बेरोजगारी के अलावा महिलाओं की सुरक्षा जिस तरह से मुंह बाए खड़ी है, उसका निदान तलाशने का समय आ गया है। लोकसभा चुनाव के लिए समीकरण बनाने वाले दल एक-दूसरे पर छींटाकशी करके ही अगर चुनावी वैतरणी पार करने की सोच रहे हैं तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि चुनाव आयोग ने ईवीएम में एक बटन ऐसा भी बनाया है जिसके सहारे मतदाता किसी भी प्रत्याशी का बहिष्कार कर सकते हैं। और वह है नोटा का बटन।

भारत को इंडिय़ा नाम से ही जाना जाता है और इस नाम का सहारा लेकर कोई सियासी गठजोड़ बनता है तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जब तिरंगे के नाम पर गुटखा बन सकता है, तो इंडिया के नाम से गठबंधन बनने से हर्ज क्या है। विवाद बढ़ाने की जरूरत नहीं है।

EDITORIALअशोक पांडेयइंडियागठबंधनराजनीतिक गठबंधन