विनाशकारी पहल

हमास के हमले के साथ ही मोसाद का नाम नहीं लेना गलत होगा। फिलीस्तीनी चरमपंथियों को याद होगा कि इजराइली समुदाय को अपने होमलैंड की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। बमुश्किल उन्हें उनकी वांछित जमीन हासिल हुई, जिसपर इजराइल नामक देश की स्थापना की जा सकी।

दुनिया में सभ्यता का विकास केवल तभी संभव है यदि चारों ओर अमन का माहौल हो। बगैर शांति के किसी भी तरह के विकास की तस्वीर नहीं बनती। लेकिन अफसोस की बात है कि इसी दुनिया में कुछ ऐसे मुल्क भी हैं जिनके शासक इस मुगालते में जी रहे हैं कि उन्हें सत्ता में अनंत काल तक रहना है। इस अनंतकालीन सोच के कायल लोग हमेशा किसी न किसी साजिश को अंजाम देने में लगे रहते हैं। पहले से ही दुनिया एक जंग झेल रही है जिसमें रूस और यूक्रेन के हजारों लोगों का खून अबतक बह चुका है।

इस जंग को रोकने की तमाम कोशिशें अबतक बेकार साबित होती रही हैं तथा इस लड़ाई का असर विश्व के खाद्य बाजार पर दिखने भी लगा है। इसी बीच चीन की ओर से ताइवान को आंख दिखाने का सिलसिला चल पड़ा है। ताइवान भी अमेरिका के इशारे पर चीन को लगातार चेतावनी दिए जा रहा है। अभी दक्षिणी चीन सागर के विस्तृत इलाके पर अधिकार को लेकर विवाद चल ही रहा था कि गाजा पट्टी विवाद भी सामने आ गया है।

बाकायदा इस विवाद में पहले से ही घात लगाकर फिलीस्तीनी आतंकियों ने अपने दावे के मुताबिक 5000 रॉकेट दाग दिए हैं। ये रॉकेट हमास की ओर से इजराइली इलाके पर दागे गए हैं। जाहिर है कि रॉकेट दागने पर कुछ लोगों का खून भी बहा होगा। इसके साथ-साथ यह भी स्पष्ट है कि इजराइली आबादी पर किए गए हमले का जवाब इजराइल की सरकार भी जरूर देगी। और इसी जवाब के तहत प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ कहा है कि हम जंग लड़ रहे हैं।

इजराइल को छेड़ना आसान नहीं

अब सवाल है कि दुनिया क्या केवल जंग ही लड़ती रहेगी। क्या इन लड़ाइयों से अलग अमन की कोई राह नहीं बन सकती। क्या इसके लिए संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के पास कोई मसौदा नहीं है। क्या सुरक्षा परिषद की ओर से किसी देश से कोई प्रभावी अपील नहीं की जानी चाहिए। फिलीस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास ने 1987 से ही इजराइल के खिलाफ जंग छेड़ रखी है तथा अल अक्सा मस्जिद समेत कई विवादित जगहों से इजराइल के कब्जे को हटाने के लिए हमले किये जा रहा है। फिलीस्तीन को पता है कि इजराइल को छेड़ना आसान नहीं होगा। इजराइल के पीछे कहीं न कहीं अमेरिका छद्म तरीके से बैठा हुआ है जबकि फिलीस्तीन के पीछे ईरान, चीन और उत्तर कोरिया भी हो सकते हैं। ऐसे में साफ जाहिर होता है कि दुनिया जंग को लेकर लगातार दो धड़ों में बँटती जा रही है।

हमास के हमले के साथ ही मोसाद का नाम नहीं लेना गलत होगा। फिलीस्तीनी चरमपंथियों को याद होगा कि इजराइली समुदाय को अपने होमलैंड की लड़ाई लड़नी पड़ी थी। बमुश्किल उन्हें उनकी वांछित जमीन हासिल हुई, जिसपर इजराइल नामक देश की स्थापना की जा सकी। संघर्ष के जरिए गठित किए गए राष्ट्र की नजरदारी के लिए खुफिया तंत्र को भी मजबूत बनाने की जरूरत थी।

इसी जरूरत को महसूस करते हुए इजराइल में मोसाद का गठन हुआ जिसे दशकों बाद अपने दुश्मन को पहचान कर मार डालने का रिकॉर्ड हासिल हो चुका है। अनचाहे तरीके से थोपी गई किसी भी जंग को सराहनीय नहीं कहा जा सकता। बेहतर है कि फिलीस्तीन और इजराइल आपसी समझदारी से काम करें ताकि नए सिरे से किसी जंग की इबारत अब और न लिखी जा सके। दोनों पड़ोसी इस विनाशकारी कदम से खुद को दूर ही रखें।

इजराइलइजराइली समुदायबेंजामिन नेतन्याहूसंपादकीयसंयुक्त राष्ट्रसुरक्षा परिषद