गिरता रुपया, गिरती साख

फिर गिरा रुपये का मूल्य। कहा जा रहा है कि भारत सरकार लगातार कारोबारी मुनाफे को कायम रखने की कोशिश कर रही है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार की सेहत बिगड़ने के कारण रुपये का लगातार अवमूल्यन हो रहा है।

सुन कर कुछ लोगों को संतोष जरूर होता होगा लेकिन हकीकत कुछ और ही है। रुपये में लगातार हो रही गिरावट तथा मुद्रास्फीति की दरों में लगातार बदलाव के मद्देनजर ही शायद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महंगाई और कम होने की बात की रेवड़ी दिखाने की कोशिश की है।

लेकिन बाजार की सेहत  पर नजर रखने वाले लोगों का मानना है कि अमेरिकी बाजारों के उतार-चढ़ाव का असर भारतीय बाजार पर पड़ना लाजिमी है। यही वजह है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने भी रेपो रेट में लगातार बदलाव किया है।

अगर बैंकों को अधिक ब्याज पर रिजर्व बैंक कर्ज दे रहा है तो जाहिर है कि उसका असर आम आदमी की जेब पर भी पड़ेगा। और इसका सीधा असर घरेलू बाजार पर पड़ेगा। इससे साफ हो जाता है कि सरकारी दावों से उलट महंगाई कम नहीं होने जा रही। अब ऐसे में निवेशकों को भी अपनी पूंजी डूबने का खतरा यदि लगे तो किसी हैरत की बात नहीं है।

सच्चाई यह है कि कोरोना महामारी के बाद से ही बाजार की सेहत लगातार बिगड़ती रही है। कुछ मुट्ठी भर लोगों के पास अगर पैसा है भी तो वे फिलहाल बाजार की उथल-पुथल से परेशान और चिंतित हैं।

जाहिर है कि उथल-पुथल भरे बाजार में कोई भी नया निवेश करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। ऐसे में भारत के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी में अगर गिरावट दर्ज हो तो किसी तरह की हैरानी की गुंजाइश नहीं होगी। और यदि दुनिया की कारोबारी होड़ में हम कमजोर जीडीपी के बूते शामिल होने की कोशिश करेंगे तो जाहिर है कि हमारी मुद्रा का अवमूल्यन होगा।ऐसे में रुपया और नीचे ही जाएगा।

नतीजा यह है कि आज डॉलर  के मुकाबले रुपया फिर 27 पैसा नीचे चला गया अर्थात एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 82.76 हो गई है।

रुपये की इस फिसलन के मद्देनजर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का दौर याद आता है। मनमोहन की सरकार के जमाने में रुपया जब  डॉलर के मुकाबले गिरा था तो गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इसे रुपये की नहीं, सरकार की गिरावट समझा जाना चाहिए। आज केंद्र में मोदी की ही सरकार है और रुपया लगातार कमजोर हो रहा है।

आशय यह है कि राजनीतिक टीका-टिप्पणी करने से पहले राजनेताओं को विषय की सही जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। आज सबसे जरूरी यह है कि घरेलू निवेश को बढ़ाने पर सरकार जोर दे तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को और विस्तार देने की कोशिशों का सहारा ले। इससे घरेलू बाजार में काम होगा और जीडीपी में वृद्धि होगी।

केवल भाषणों से काम नहीं होने वाला है। विश्व व्यापी मंदी के बीच भी भारत में असीम संभावनाएं हैं। जरूरत है  कि सही दिशा में सोच कर हम अपनी आर्थिक नीतियों की समीक्षा करें। केवल सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र का जामा पहना कर मद्रास्फीति को संतुलित करने की सोच बचकानी कही जाएगी।

EDITORIALfalling rupee falling creditinflation ratesreserve Bank of IndiaUnion Finance Minister Nirmala Sitharamanकेंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमणगिरता रुपया गिरती साखभारतीय रिजर्व बैंकमुद्रास्फीति की दरोंसंपादकीय