कोयला राजधानी की दशा

जांच सही दिशा में होगी तथा दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाया जा सकेगा, इस भरोसे के बावजूद स्थानीय लोगों के दिमाग में यह बात कौंधती रहेगी कि आखिर वे कौन से चेहरे हैं जिनकी मिलीभगत के कारण अपराधियों को यहां किसी से डर नहीं है। आखिर कैसे कोई अपराधी किसी कारोबारी से रंगदारी टैक्स मांग लेता है और प्रशासन खामोश रह जाता है।

अपने देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकारें शपथ लेकर लोगों को आश्वस्त करती हैं कि उनके शासन में सबके साथ न्याय किया जाएगा। भय या पक्षपात की कोई जगह नहीं होगी। होना भी नहीं चाहिए। लेकिन सरकार बनने के बाद देखा यही जाता है कि पूरा का का पूरा सरकारी तंत्र केवल शासकों की सेवा में जुट जाता है और बेचारी जनता ठगी रह जाती है। ताजा घटना में झारखंड के धनबाद का जिक्र किया जा सकता है जहां लंबे समय से कानून और व्यवस्था को मजबूत करने की मांग उठ रही है।

यहां तक कि व्यवसाइयों ने अपना कारोबार ठप करके भी जिले में कानून का राज कायम करने की मांग की है। इस क्रम में जिला प्रशासन के सरकारी बाबुओं की ओर से रोजाना सफाई भी दी जाती रही है। भरोसा यह दिलाया जाता है कि जिले में व्याप्त अराजकता को समाप्त कर दिया जाएगा। लेकिन हालात इन आश्वासनों के बावजूद जिस ओर करवटें ले रहे हैं, उनसे यही लगता है कि आम लोगों की जान सांसत में है।

ज्ञातव्य है कि धनबाद को भारत की कोयला राजधानी के रूप में जाना जाता है तथा कोयला खनन के जरिए राज्य व केंद्र सरकार को यहां से भारी भरकम राजस्व की प्राप्ति होती है। इसे कोयले का दुर्भाग्य कहें या इस इलाके का जहां की काली कोठरी में जिसने भी प्रवेश किया, उसके बदन पर दाग जरूर दिखे। जाहिर है कि जहां इतने व्यापक स्तर पर व्यवसाय होता है, वहां अपराध को संरक्षण देने वाले लोगों की संख्या भी कुछ कम नहीं हुआ करती। अपराध या अपराधियों को संरक्षण देने के मामले में खाकी और खादी के मेल को झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन खादी वाले सारा दोष खाकी पर मढ़ दिया करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि बढ़ते अपराधों के ग्राफ के बारे में किसे जवाबदेह माना जाए।

ताजा घटना में यहां की जेल में शूटआउट को अंजाम दिया गया है। हैरत की बात रही कि शूटआउट से कुछ दिन पहले ही कथित तौर पर जिले के शीर्ष अधिकारियों ने जेल की हालत का मुआयना किया था। कथित तौर पर अधिकारियों को इस मुआयने में खैनी रखने वाली डिबिया और अन्य कुछ सामान जेल में मिले थे, जिनसे अपराध का कोई संबंध नहीं बताया जाता। ऐसे में पूछा जा सकता है कि फिर जेल जैसी सुरक्षित जगह में बंदूक कौन ले गया। यदि कोई ले गया तो उसे ऐसा करने की इजाजत किसने दी। शायद यही वजह है कि अदालत को भी इससे अचरज हुआ। विशेष जांच दल के गठन का निर्देश दिया गया है।

जांच सही दिशा में होगी तथा दोषियों को उनके अंजाम तक पहुंचाया जा सकेगा, इस भरोसे के बावजूद स्थानीय लोगों के दिमाग में यह बात कौंधती रहेगी कि आखिर वे कौन से चेहरे हैं जिनकी मिलीभगत के कारण अपराधियों को यहां किसी से डर नहीं है। आखिर कैसे कोई अपराधी किसी कारोबारी से रंगदारी टैक्स मांग लेता है और प्रशासन खामोश रह जाता है। जिस शूटर की जेल में हत्या हुई है, उसके खिलाफ भी पुलिस कोई सबूत क्यों नहीं जुगाड़ सकी।

सनद रहे कि इसी धनबाद में एक जज को एक ऑटो ड्राइवर के वहशीपन के कारण सड़क हादसे में जान गंवानी पड़ी थी। मामले को हल्के में लेने के बजाए राज्य और जिला प्रशासन को गंभीर होना होगा। नागरिकों के जान-माल की सुरक्षा के लिए प्रशासन की ईमानदार पहल होगी-ऐसी उम्मीद जरूर की जाती है।

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