झारखंड का महुआ अब अंगूर की बेटी को विश्व में देगा टक्कर

झारखंड : झारखंड के महुआ की इतनी ज्यादा मांग बढ़ चुकी है कि अब वाइन बनाने वाली देश की चर्चित कंपनियां भी इसके कारोबार में शामिल होना चाहतीं हैं। प्रदेश में महुआ की बहुत ज्यादा मात्रा में पैदावार और सही रखरखाव नहीं होने से इसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। दूसरी तरफ गोवा म ब्रांडेड वाइन बनानेवाली एक कंपनी ने झारखंड में महुआ से तैयार होने वाली शराब की फैक्ट्री लगाने में रुचि दिखाई है। यदि ऐसा हुआ तो प्रदेश में रोजगार के मार्ग तो प्रशस्त होंगे ही लोगों को आर्थिक रूप से भी मजबूत किया जा सकेगा।

राज्य में महुआ शराब का अवैध कारोबार वर्षों से चल रहा इसका ज्यादातर फायदा शराब माफिया और उग्रवादी संगठन उठा रहे हैं। झारखंड के जंगलों में मिलने वाले औषधीय गुणों वाले पौधों-फूलों की बहुलता के बाद भी पांच साल में महुआ फ्लावर वैल्यू एडिशन डेवलपमेंट एंड कंट्रोल एक्ट लागू नहीं हो पाया। सूत्रों के अनुसार झारखंड में वाइन इंडस्ट्री लगाने को इच्छुक गोवा की वाइन कंपनी के मालिक डेसमन नाजरेत को फलों के रस से वाइन और बीयर बनाने की महारत हासिल है। वे महुआ के फूल से भी शोध स्वरूप उत्कृष्ट श्रेणी का अल्कोहल और नन अल्कोहल पेय पदार्थ बना चुके हैं।

इसके अलावा जमशेदपुर के निवेशक कन्हैया प्रसाद ने भी महुआ के फूल से बनने वाले पेय पदार्थ के लिए कारखाना लगाने के लिए इसमें पैसा लगाने की इच्छा जाहिर की है। लेकिन एक्ट के लागू नहीं होने और लाइसेंस नहीं मिलने के बाद महुआ के उत्पाद और उद्योग का दर्जा नहीं मिल पाया है।

वही केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पहल पर महुआ से अल्कोहल फ्री ड्रिंक बनाने की तैयारी शुरू की गई है। इस पर आईआईटी काम कर रहा है। बता दे कि अब केवल महुआ से गंध न हो इस पर काम किया जा रहा है। महुआ का इस्तेमाल केवल शराब बनाने में ही नहीं बल्कि इसका उपयोग लड्डू, बिस्कुट, अचार, पुआ, आयुर्वेदिक दवाओं समेत काफी कुछ बनाने में किया जाता है।

राज्य के लोहरदगा जिले में तो इससे शुरुआती तौर पर लड्डू और बिस्कुट बनाने का काम किया जा रहा है। लेकिन यहां खपत कम होने के कारण इस काम का स्वरूप बड़ा नहीं हो पाया। यही कारण है इसे बड़े मंच पर ले जाने की जरूरत है। बता दे कि गर्मी के दिनों में ग्रामीण इसे बाजार में बेचते हैं।