खड़गे का नाम प्रस्ताव करने में छिपा ममता-केजरीवाल का फायदा

किला बचाने की है बड़ी चुनौती

नयी दिल्ली/कोलकाता, सूत्रकार : इंडिया गठबंधन क्या 2024 के चुनावों में पीएम नरेंद्र मोदी को हैट्रिक लगाने से रोक पाएगा? सबसे बड़ा सवाल है। इसके अलावा राजनीतिक हलकों में जिन सवालों पर चर्चा हो रही उनमें है कि क्या कांग्रेस कमबैक करेगी या और कमजोर होगी? तीसरा और आखिरी सवाल है कि क्या क्षेत्रीय दल अपने गढ़ बचा पाएंगे। इंडिया गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय दलों के सामने अपने अस्तित्व को बचाने की बड़ी चुनौती है। पश्चिम बंगाल की बात करें तो वहां पर बीजेपी लगातार बढ़ रही है। तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी की बीजेपी से तल्खी की सबसे बड़ी वजह भी यही है। इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक में जब दीदी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे बढ़ाया था तो काफी नेता चकित रह गए थे। केजरीवाल ने इस नाम का समर्थन किया।

 

ममता-केजरीवाल दोनों का फायदा

1980 के आम चुनाव में जनता पार्टी ने भी दलित कार्ड खेला था। जनता पार्टी ने एक बार बाबू जगजीवन राव का नाम आगे करके चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी 31 सीटों पर सिमट गई थी। खरगे का नाम आगे आने से कांग्रेस को कितना फायदा होगा? यह नतीजों के साफ होगा, लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि फिलहाल इंडिया गठबंधन की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नाम आगे करके बड़ी राजनीति खेल दी है।

दीदी लोकसभा चुनावों में राज्य में दलित वोट को हर हाल में अपने साथ रखना चाहती हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति अरविंद केजरीवाल की है। केजरीवाल को 2024 को चुनावों में अगर सबसे ज्यादा सीटों की उम्मीद किसी राज्य से है तो वह है पंजाब। ऐसे में ममता और केजरीवाल की तरफ खरगे के नाम को आगे करने में दोनों पाटियों का फायदा देखा जा रहा है। इसी रणनीति के तरह उन्होंने खरगे के नाम को आगे किया।

 

किला बचाने की है बड़ी चुनौती

पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने 2019 में 18 सीटें जीतकर चौंका दिया था। बीजेपी के इस प्रदर्शन से सबसे ज्यादा नुकसान ममता बनर्जी को हुआ था। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में 72 के आंकड़े तक पहुंची बीजेपी को ममता बनर्जी इतनी सीटों पर रोक पाएंगी? यही सबसे बड़ा सवाल है।

केंद्रीय मंत्री अमित शाह जिस तरीके से पश्चिम बंगाल पर फोकस किए हुए हैं। वह दीदी की दूसरी बड़ी परेशानी है। पांच राज्यों के चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद अगले ही दिन अमित शाह कोलकाता पहुंचे थे और आज फिर वे कोलकाता में ही हैं। शाह ने साफ किया था कि अगली बार राज्य में सरकार बनानी है तो इसकी नींव 2024 में ही रखनी होगी।

जैसी मुश्किल दीदी की है, कुछ वैसी ही हालत आम आदमी पार्टी की पंजाब में है। वहां पर बीजेपी ने गुजरात के पूर्व सीएम विजय रुपाणी को मोर्चे पर लगाया हुआ है। बीजेपी ने जिस तरह से पंजाब की कमान कांग्रेस से आए सुनील जाखड़ को सौंपी है ऐसे में साफ है कि पार्टी अब राज्य में आत्मनिर्भर बनना चाहती है। ऐसे में पश्चिम बंगाल हो या फिर पंजाब दोनों जगहों पर दलित वोटों की अहमियत काफी ज्यादा है। ममता बनर्जी हो या फिर अरविंद केजरीवाल दोनों खरगे का कार्ड खेलकर अपने वोट बैंक को एक अलग संदेश देना चाहते हैं।

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