मणिपुर का संकट

हिंसा का असर यह है कि केंद्र सरकार की ओर से बार-बार लोगों को भेजा जा रहा है।

भारत का पूर्वोत्तरी राज्य मणिपुर लगातार जल रहा है। केंद्र की ओर से आग बुझाने की कथित तौर पर सारी कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दिन पर दिन हालात बिगड़ते ही जा रहे हें। आलम यह है कि केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री का घर तक जला दिया गया। यह बात काफी गंभीर कही जाएगी। राजकुमार रंजन सिंह मोदी सरकार के विदेश राज्यमंत्री हैं तथा उत्तर-पूर्व के कद्दावर नेता माने जाते हैं। हिंसा का असर यह है कि केंद्र सरकार की ओर से बार-बार लोगों को भेजा जा रहा है। अमित शाह ने खुद मणिपुर का दौरा किया। सभी संबंधित पक्षों से संयम बरतने की अपील की गई। सामाजिक एकता कायम करने के कुछ सुझाव भी दिए गए। लेकिन लगता यही है कि सबकुछ टांय-टांय-फिस्स हो गया।

मणिपुर के हालात के बारे में खुद मोदी सरकार के मंत्री राजकुमार रंजन सिंह का दावा है कि राज्य में कानून-व्यवस्था पूरी तरह दम तोड़ चुकी है। ऐसे में केंद्र की एनडीए सरकार मणिपुर में शांति बहाली के लिए क्या करने वाली है, उसकी अगली योजना क्या है-अभी इस बात का खुलासा नहीं हो सका है। लेकिन देर से ही सही, समस्या का समाधान तो खोजना ही होगा। दरअसल किसी भी समाज में शांति स्थापना के लिए जरूरी होता है लोगों का पहले विश्वास हासिल करना। हिंसा का जो दौर शुरू हुआ है, उसकी जड़ में पहुंचने की जरूरत है।

दशकों से जिस राज्य को केंद्र ने उपेक्षित रखा हो या किसी एक खास कुनबे के नेता के बूते ही छोड़ रखा हो, वहां के लोगों की मानसिकता बिगड़ने के लिए कुछ तत्व जरूर काम कर रहे होते हैं। मणिपुर में भी आज जो हालात देखने को मिल रहे हैं, उनके बिगड़ने में काफी वक्त लगा है। बार-बार केंद्र को इस बारे में अतीत में भी रिपोर्ट भेजी जाती रही लेकिन किसी की नींद नहीं खुली। हैरत की बात यह है कि पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों के लोगों ने खुद को भारत से अलग किसी दूसरे देश का नागरिक समझना शुरू कर दिया था। उनका आरोप रहा है कि नई दिल्ली में बैठे राजनेता उनके साथ सौतेला व्यवहार करते हैं। और यहां के आदिवासियों को केंद्र के कथित सौतेलेपन को समझाने में चीन के साथ कई अन्य एजेंसियां लगातार अपना काम करती रही हैं। इनमें कुछ उग्रपंथी गुटों का भी हाथ रहा है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार इस बीमारी की जड़ तक जाए।

केवल मैती जनजातियों को अनुसूची में रखने के मसले पर इतना बड़ा विवाद छिड़ने का कोई खास मतलब समझ में नहीं आता। जरूर कोई भूमिगत वजह है जिसने यहां के समाज को इस कदर विभाजित कर दिया है जिसकी आंच दिल्ली तक महसूस की जा रही है। दिल्ली में मैती समुदाय के विद्यार्थियों के साथ जो हाल में मारपीट की गई, उसमें भी मणिपुरी छात्रों की दलील यही थी कि इस जनजाति ने आम लोगों के हक को छीनने का प्रयास किया है। जाहिर है कि विद्यार्थियों की मानसिकता बदलने में जरूर किसी ऐसी ताकत का हाथ है जो किसी भी हालत में भारत की सार्वभोमिकता से खिलवाड़ करन चाहती है। ऐसे में अगर केंद्रीय मंत्री का घर जलाया जाता है या वे अगर राज्य में कानून-व्यवस्था के दम तोड़ देने की बात कहते हैं तो इसे संजीदगी से समझना होगा। इसका समाधान केवल गोली से नहीं हो सकता। मणिपुरी समाज के बुद्धिजीवियों-धर्मगुरुओं वगैरह की भी इसमें राय ली जानी चाहिए- विशेषकर उनकी राय काम आएगी जिनका सामाजिक सरोकार विस्तृत है। सबको साथ लेकर ही इस आग को बुझाने की जरूरत है अन्यथा राष्ट्रपति शासन को स्वस्थ विकल्प नहीं माना जा सकता।