मीडिया और अदालत

आरोपों के तहत कुछ नामचीन पत्रकारों को गिरफ्तार किय़ा गया है जिनसे पूछताछ भी की जा रही है। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय में सरकार को खास सलाह दी है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि पत्रकारों की आजादी के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। उन पर अपने सूत्रों को उजागर करने के लिए किसी तरह का दबाव भी नहीं बनाय़ा जा सकता।

लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह माना जाता है कि मीडिया को स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए। लेकिन जैसे-जैसे देश में सरकार चलाने वाले नेताओं का चरित्र बदलता गया, उसी रफ्तार में मीडिया का चेहरा भी बदलता रहा। आज एक ऐसा दौर सामने खड़ा है जहां किसी भी पारंपरिक मीडिया के मुकाबले सोशल मीडिया की पहुंच आम लोगों तक अधिक है।

यही वजह है कि इसे आज का सबसे सशक्त माध्यम माना जा रहा है। यह बात और है कि जिस चीज का भी आविष्कार किया जाता है, उसके पीछे समाज की भलाई की ही सोच होती है। भलाई के बदले बुराई बढ़ जाए तो इसे तंत्र की गफलत कहा जाएगा। पारंपरिक मीडिया की धीमी गति को अचानक सोशल मीडिया ने तेज कर दिया है जिसमें सबसे प्रखर रूप है आज डिजिटल समाचारों का।

डिजिटल प्लेटफॉर्म की बढ़ती लोकप्रियता

डिजिटल प्लेटफॉर्म की दिनोंदिन बढ़ती लोकप्रियता ने सरकार को भी इस ओर सोचने पर मजबूर कर दिया है। इससे जुड़े पत्रकारों के विचारों का जनता पर व्यापक असर देखा जा रहा है जिससे सरकार ने इस पर नजरदारी शुरू की है। इसी नजरदारी में देश के तकरीबन सौ से ज्यादा पत्रकारों के डिजिटल गैजेट्स सरकारी एजेंसियों द्वारा जब्त किए गए हैं जिनकी बारीकी से जांच हो रही है। जांच इसलिए हो रही है कि सरकार को शक है कि कुछ डिजिटल न्यूज वाले पत्रकारों को चीन की ओर से भारत के खिलाफ प्रचार करने के लिए पैसे दिए जा रहे हैं।

इन्हीं आरोपों के तहत कुछ नामचीन पत्रकारों को गिरफ्तार किय़ा गया है जिनसे पूछताछ भी की जा रही है। लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी राय में सरकार को खास सलाह दी है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि पत्रकारों की आजादी के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। उन पर अपने सूत्रों को उजागर करने के लिए किसी तरह का दबाव भी नहीं बनाय़ा जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने बाकायदा सरकार से कहा है कि मीडिया पर नजरदारी के लिए तंत्र विकसित किया जाना जरूरी है लेकिन किसी की आजादी के साथ समझौता नहीं किया जाना चाहिए। ज्ञातव्य है कि आज तकनीक का युग है। सारे पत्रकारों के गुप्त दस्तावेज आज उनके गैजेट्स में ही मौजूद हैं।

सरकार को नियम बनाने की सलाह

अगर सरकारी एजेंसियां उन गैजेट्स को जांच के नाम पर खंगालती हैं तो लाजिमी है कि कुछ ऐसे दस्तावेज गायब भी कर दिए जाएं जिनसे किसी सूत्र के नाम का खुलासा हो जाए। इसीलिए शायद सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की पड़ताल के साथ पत्रकारों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई के लिए भी सरकार को कुछ नियम बनाने की सलाह दी है।

प्रसंगवश कहा जा सकता है कि हाल ही में आए एक सर्वेक्षण से इस बात का पता चला है कि भारत मीडिया की स्वाधीनता के मामले में पूरी दुनिया में किस तरह फिसड्डी होता जा रहा है। सरकार को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए। किसी भी सरकार का दौर एक समान कभी नहीं रहा है। बड़ी-बड़ी सल्तनतें वक्त के साथ धराशायी होती रही हैं।

इतिहास से वर्तमान को सीखने की अपेक्षा रखनी चाहिए। स्वाधीनता के नाम पर किसी मीडिया को राष्ट्रदोह करने की इजाजत नहीं दी जा सकती लेकिन यह भी सही है कि सरकार की नीतियों की आलोचना करने वालों को शत्रु नहीं समझा जाए। लोकतंत्र का यही तकाजा है। अदालत ने सही दिशा निर्देश दिया है। अब गेंद सरकार के पाले में है।

डिजिटल न्यूजपारंपरिक मीडियासंपादकीयसरकारी एजेंसियांसुप्रीम कोर्ट