मीडिया की आवाज

बंगाल के एक सांसद अभिषेक बनर्जी की पत्नी ने शिकायत की है कि मीडिया का एक वर्ग किसी भी घटना को बढ़ा-चढ़ा कर बगैर तथ्यों की जानकारी के ही जनता के बीच परोस रहा है। इससे उनके परिवार की छवि खराब होती है। इस शिकायत के आधार पर मीडिया पर नियंत्रण की गुजारिश की गई। लेकिन हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने दो टूक जवाब दे दिया।

मुल्क की सियासत या प्रशासन जैसे-जैसे करवटें बदलता है, उसके आनुषांगिक कई बातों में भी बदलाव के संकेत देखे जाते हैं। आजकल फिर मीडिया पर अंकुश लगाने की बात होने लगी है जिसे कई मामलों में कोई सकारात्मक तो कोई नकारात्मक बताने पर तुला हुआ है। मूल बात यह है कि सत्ता का लाभ लेने वाले लोग यह चाहते हैं कि मीडिया वही कहे जो सरकार के लोग चाहते हैं जबकि प्रतिपक्ष के साथ ही आम जनता इस बात की अपेक्षा रखती है कि कम से कम मीडिया के जरिए लोगों तक सही जानकारी मिले। इसकी वजह शायद यह भी है कि ज्यादातर सियासत से जुड़े लोगों की बातें सच्चाई से काफी दूर होती जा रही हैं।

मीडिया की असली ताकत

और जहां तक मीडिया का सवाल है, वह भी वक्त के जाल में उलझ कर चकरघिन्नी हो गया है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अलावा अब डिजिटल मीडिया तथा सोशल मीडिया ने घटनाओं को एक नई ऊंचाई दी है। कोई भी घटना जनता से अलग नहीं रह पाती है। कभी-कभार तो जनसेवकों तक भी कुछ खबरें मीडिया के जरिए ही आजकल पहुंचने लगी हैं। लेकिन चूंकि डिजिटल या सोशल मीडिया को नियंत्रित करने का अभी तक कोई तंत्र विकसित नहीं हो सका है, इसीलिए कई बार अपुष्ट खबरों को भी जनता के बीच परोस दिया जाता है। बाद में पुष्टि के लिए लोग समाचार चैनलों या अखबार के दफ्तरों में फोन करने लगते हैं। आशय यह है कि मीडिया की असली ताकत कहीं न कहीं नेट की दुनिया में क्षीण होती गई है जिससे नागरिक समाज को भी कई बार मीडिया से वितृष्णा होने लगती है।

प्रसंगवश आईएनडीआईए गठबंधन की ओर से कुछ मीडिया के लोगों के बहिष्कार की बात सामने आई। इसके तुरंत बाद एक डिजिटल समाचार चैनल के जरिए देशद्रोह की मानसिकता फैलाने का आरोप लगा और कुछ पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया। अभी इस पर बहस चल ही रही थी कि पश्चिम बंगाल के एक घोटाले के सिलसिले में चल रहे मुकदमे में मीडिया की जुबान बंद करने की अपील की गई। इस अपील के जवाब में कलकत्ता हाईकोर्ट ने जो टिप्पणी की है, शायद वह इन सारे सवालों के जवाब के तौर पर काफी है।

मीडिया पर नियंत्रण की गुजारिश

दरअसल बंगाल के एक सांसद अभिषेक बनर्जी की पत्नी ने शिकायत की है कि मीडिया का एक वर्ग किसी भी घटना को बढ़ा-चढ़ा कर बगैर तथ्यों की जानकारी के ही जनता के बीच परोस रहा है। इससे उनके परिवार की छवि खराब होती है। इस शिकायत के आधार पर मीडिया पर नियंत्रण की गुजारिश की गई। लेकिन हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने साफ कर दिया है कि संविधान के रचनाकारों ने मीडिया को संविधान का चौथा स्तंभ करार दिया है। इसकी जुबान बंद करना अदालत के बूते की बात नहीं।

मतलब यह कि संविधान प्रदत्त अधिकारों को अदालत किसी भी सूरत में किसी से छीन नहीं सकती। लोकतंत्र के इस अमोघ मंत्र की सीख के तहत अदालत ने साफ कर दिया है कि मीडिया अपने तरीके से काम करने को स्वतंत्र है। अदालत की इस टिप्पणी से मीडिया का कद तो बढ़ा है, लेकिन उसके साथ-साथ जिम्मेवारी भी बढ़ी है। मीडिया को और अधिक सचेत होना होगा। जनता को खबरदार करना जरूरी है लेकिन निर्णायक बनने की भूमिका से मीडिया को बचना होगा।

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