ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता मरांग जयपाल सिंह मुंडा को आदिवासी होने के वजह से नहीं मिला भारत रत्न

 

चाईबासा : हॉकी ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा देश के सभी क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने के बाद भी सिर्फ आदिवासी होने के कारण भारत रत्न से नहीं नवाजा गया।यह बातें अतिथि के रूप में झारखंड पुनरूत्थान अभियान के संयोजक सन्नी सिकु ने टाटा कॉलेज बिरसा मेमोरियल हॉल में मरांग गोमके की पुण्य तिथि के अवसर पर टाटा कॉलेज बिरसा मेमोरियल हॉल मे कॉलेज के आदिवासी/जनरल हॉस्टल के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित परिचर्चा में कहा है। विदित हो मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित करने के बाद परिचर्चा आयोजित की गई ।

 

परिचर्चा में सन्नी सिंकु ने विस्तार से चर्चा करते हुए आगे कहा जबकि मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा देश का नाम रोशन करने के लिए आईसीएस जैसे प्रतिष्ठित नौकरी का प्रशिक्षण छोड़ दिया था।वे शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिए। संविधान सभा के सदस्य के रूप में देश के आदिवासियों के नौकरी हो या लोकसभा,विधानसभा में जन प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त करने के लिए एतिहासिक योगदान दिए। लेखक के रूप में भी उन्होंने उत्कृष्ट कार्य किए । राजनीतिक क्षेत्र में भी पहला चुनाव से लेकर ताउम्र उनका योगदान रहा है।साथ ही आदिवासियों के लिए पांचवी और छठी अनुसूची के प्रावधान के लिए उनका योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

 

आदिवासी हॉस्टल के प्रीफेक्ट वीरू गागराई ने कार्यक्रम का संचालन और विषय प्रवेश करते हुए कहा कि मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की पुण्य तिथि मनाने के साथ ही उनके कृत्य पर परिचर्चा करना ही प्रेरणा का विषय है। हम छात्र छात्राओं के बीच झारखंड के ऐसे आइकन के बारे में कार्यशाला की भी आवश्यकता है। जनरल हॉस्टल के प्रीफेक्ट विवेक पूर्ति ने कहा कि सचमुच मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ऐसे ही मरांग गोमके नहीं कहलाए।उनका योगदान हम आदिवासियों के लिए अविस्मरणीय है। टाटा कॉलेज के छात्र मनोज टुडू ने कहा कि छात्र छात्राओं को मोटिवेट करना आवश्यक है। ताकि स्टूडेंट्स सही रणनीति के तहत मेहनत कर अपने चरित्र का निर्माण कर सके।

 

टाटा कॉलेज के छात्र लालमोहन मुर्मू ने कहा मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा द्वारा संविधान सभा में दी गई अभिभाषण अपने आप में अनूठा रहा है।जिसमें उन्होंने कहा था कि हम आदिवासियों को आप लोकतंत्र नहीं सीखा सकते।आदिवासी से अधिक लोकतंत्र इस पृथ्वी पर दूसरा जीव नहीं है।आपको आदिवासियों से ही लोकतंत्र सीखना होगा। परिचर्चा में शिक्षाविद जगदीश चंद्र सिकु,अमृत मांझी,सुमंत ज्योति सिकु और अन्य टाटा कॉलेज हॉस्टल के छात्रों ने परिचर्चा में अपना विचार रखा।इस अवसर पर टाटा कॉलेज आदिवासी/जनरल हॉस्टल के सैकड़ों छात्र उपस्थित थे।