हैवानियत का नंगा नाच

आजकल देश की हालत देखकर पूछने को जी चाहता है कि किसकी नजर लग गई इस समाज को। जिधर देखो आधुनिकता के नाम पर जहर की फसल उगाई जा रही है। रिश्ते तार-तार हो रहे हैं, इंसानियत लहूलुहान हो रही है और समाज के चेहरे पर शिकन नहीं। अभी हाल ही में खबर आई थी कि दिल्ली में एक साथ रह रहे प्रेमी युगल में से एक ने अपनी प्रेमिका के 36 टुकड़े किए और उन्हें जंगलों के सुपुर्द कर आया। इसके बाद तो जैसे तांता ही लग गया। इश्क के नाम पर दो किशोर वय के लोगों को सामाजिक मान्यताओं से ऊपर उठकर नई दुनिया बसाने का सपना देखना और उसके बाद एक साथ रहने की तैयारी करना। मतलब लिव-इन। किसी एक रिश्ते को जीवित करने के लिए पुराने सारे रिश्तों से तौबा कर लेना ही शायद इस आधुनिकता का दूसरा रूप है। लेकिन दिल्ली के श्रद्धा वालकर हत्याकांड के बाद से लिव-इन की सच्चाई धीरे-धीरे खुलने लगी है। इन रिश्तों को क्या नाम दें, उस मानसिकता को क्या कहें या इस आधुनिक समाज की दिशा के बारे में ही क्या कहा जाए- कुछ भी साफ नहीं हो रहा है। अब एक नई खबर आई है। इसमें मनोज साने नामक व्यक्ति ने मुंबई के मीरा रोड के अपने लिव-इन पार्टनर सरस्वती वैद्य की हत्या के बाद उसकी देह के टुकड़े ही नहीं किए, बल्कि शरीर के अंगों को कूकर में उबाल कर उन्हें नष्ट करने की कोशिश कर रहा था। पड़ोसियों को बदबू मिली और बात पुलिस तक पहुंची।

तफ्तीश इसके आगे भी जरूर चलती रहेगी। लेकिन आधुनिकता की अंधी दौड़ समाज को किधर लिए जा रही है-यह सवाल जरूर खड़ा हो जाता है। ध्यान देने की बात है कि कानून बनते हैं इंसान को सही राह पर ले जाने के लिए। समाज को अनुशासित रखने के लिए कुछ सामाजिक परंपराएं भी बनती हैं। लेकिन जब लोग खुद ही अराजक हो जाएं तो इसमें देश का प्रशासन भी आखिर कहां तक किसी को रोक पाएगा। जाहिर है कि ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या इसी समाज की देन है। अति आधुनिकता और दिखावे की सोच ने आज इंसान को ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है जहां रिश्तों की अहमियत ही खत्म होती जा रही है।

पाश्चात्य दुनिया में अनिगनत लोगों से विवाह संबंध बनाने फिर तलाक देकर आगे बढ़ने की मान्यता होने के कारण ही न्यूक्लियर फैमिली की पैदाइश होती है जिसमें सिर्फ पति-पत्नी की ही जगह होती है, नतीजतन एक संतान के कई मां-बाप हो सकते हैं। लेकिन भारतीय समाज में पति-पत्नी के अलावा रिश्तों की असंख्य लड़ियां हैं, जिन्होंने सदियों से एक विशेष सूत्र में बाँधे रखा है। लेकिन आज वह बात खत्म हो रही है। आधुनिकता ने पति-पत्नी के रिश्ते को पार्टनर बना दिया है, जिसके कारण ज्यादातर शहरी आधुनिकता में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ने लगी है। ध्यान देने की बात है कि जो लोग खास आकर्षण से किसी एक के लिए अपनी किशोरावस्था तक पहुंचाने वाले रिश्तों को लात मारकर केवल पार्टनर बनने या बनाने की होड़ में शामिल होते हैं, कथित चाहने वाले या वाली के लिए पिछले रिश्तों को ठुकरा जाते हैं, वे आगे भी रिश्ते को जरूर लात मारेंगे। उनमें काम कर रही है अति आधुनिकता। कोई और.. कोई और.. के साथ ही कुछ और …बेहतर की तलाश ऐसे ही अपराधों को जन्म दे रही है। लिव-इन हो या वैवाहिक संबंध- केवल इन संबंधों के बूते ही समाज नहीं चलता। हर युवा को कल बुजुर्ग होना होगा। नई पीढ़ी इसे समझ सके तो कल्याण हो।

editoriamanoj sanemira road casemurder casesakshi murder casesaraswati vaidyashraddha walkar murder case