राज्यपाल पर सवाल

आजाद भारत में ऐसा कई बार हो चुका है कि किसी प्रदेश की सरकार अगर केंद्र में शासक दल के विरुद्ध हुई तो उस राज्य में राज्यपाल को लेकर हंगामा तय है। आरोप यही लगते हैं कि राज्यपाल अक्सर केंद्र सरकार के इशारे पर ही काम करते हैं तथा भिन्न सोच वाली सरकारों को हमेशा अस्थिर करने की साजिश रचते हैं। यह दौर नया नहीं है। कांग्रेस के शासनकाल में भी यही होता था और आज केंद्र की एनडीए सरकार पर भी यही आरोप लग रहे हैं कि दूसरे दलों की सरकारों को राज्यपाल के जरिए परेशान किया जाता है। हाल तक बंगाल की ममता बनर्जी सरकार भी पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ के कामकाज पर सवाल खड़े करती थी और आज सीवी आनंद बोस राज्य सरकार के निशाने पर हैं। इसी तरह तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि भी स्टालिन सरकार के निशाने पर आ गए हैं। दरअसल तमिलनाडु की डीएमके सरकार में बगैर पोर्टफोलियो के मंत्री वी सेंथिलबालाजी को एक घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तारी के बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश जारी हुआ। इस आदेश के आते ही राज्यपाल ने अचानक बगैर मुख्यमंत्री से परामर्श किए ही सेंथिलबालाजी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया। यहां तक तो बात समझ में आती है लेकिन बाद में पता नहीं किन अज्ञात कारणों से देर रात को ही राज्यपाल ने मंत्री को बर्खास्त करने का आदेश वापस भी ले लिया। यह घटना पूरे देश में अनूठी और विरल है जिसे लेकर केंद्र की एनडीए सरकार को विपक्ष ने घेरना शुरू कर दिया है।

प्रचलित कानून के अनुसार किसी भी राज्य के मंत्री को बगैर उस राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह के कोई राज्यपाल बर्खास्त नहीं कर सकता। संविधान की धारा 164 (1) के अनुसार राज्यपाल केवल किसी राज्य के मुख्यमंत्री को ही नियुक्त करते हैं। बाकी सारे सदस्यों को मुख्यमंत्री की मर्जी के अनुसार मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है। ठीक इसी तरह धारा 75(1) के तहत प्रधानमंत्री की नियुक्ति होती है और पीएम की मर्जी के मुताबिक ही शेष बचे मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह दी जाती है।

प्रसंगवश बताना जरूरी है कि किसी भी विधायक को बर्खास्त करने के कुछ प्रावधान हैं जिन्हें संविधान की धारा 191 के तहत समझा जा सकता है। इसके तहत पांच बातें शामिल हैं। पहली शर्त यह है कि विधायक अगर किसी लाभ के पद पर आसीन हो तो बर्खास्त हो सकता है। दूसरी यह कि वह मानसिक रूप से बीमार या विकृत हो जाए। तीसरी शर्त है कि वह उधार लेकर दिवालिया हो जाए। चौथी शर्त है कि वह देश या प्रदेश की नागरिकता का परित्याग करना चाहे और पांचवीं शर्त है कि उसने किसी केंद्रीय कानून के तहत बर्खास्त करने लायक अपराध किया हो। आशय यह है कि जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के तहत अगर ऐसा अपराध किया हो जिसके लिए उसे कम से कम दो साल की सजा दी जाए, तभी उसे बर्खास्त किया जा सकता है। लेकिन तमिलनाडु के राज्यपाल ने आनन-फानन में बालाजी को बर्खास्त करने तथा बाद में अपने ही आदेश पर रोक लगाने का जो काम किया है, उससे देश में नए सिरे से फिर राज्यपालों की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं। माना यही जाता है कि राज्यपालों को केंद्र का एजेंट बनाकर राज्यों में परोसा जाता है तथा विपक्षी दल की सरकारों को राजभवन के जरिए ही दबाव में रखने की कोशिश होती है। रवि ने इस धारणा को और बलवती कर दिया है। ऐसा नहीं होता तो बेहतर था।

CV Anand Bosegoverner of bengal