प्रकृति पर्व सरहुल को लेकर हर्षोल्लास का माहौल

सूत्रकार, शिखा झा

रांची : आज झारखंड में सबसे बड़ा प्राकृतिक विश्व उत्सव सरहुल है। यह प्राथमिक आदिवासी त्योहार है। चैत्र मास की तृतीया तिथि को यह पर्व प्रतिवर्ष मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से प्रकृति पर केंद्रित है। इसमें साल और सखुआ के पेड़ विशेष रूप से पूजनीय हैं। यह त्यौहार पतझड़ के बाद पेड़ों में दिखने वाले नए फूलों के स्वागत के लिए आयोजित किया जाता है। इसको लेकर कई मान्यताएं हैं। सरहुल शब्द सार और हुल अक्षरों से मिलकर बना है। सर सखुआ का फूल है और हुल क्रांति का शब्द है। एक नए अंदाज़ में साल के पेड़ों के खिलने का प्रतीक है। इस दिन धूमधाम से एक विशाल शोभायात्रा निकाली जाती है। रांची में सरहुल के लिए खास इंतजाम किए गए हैं.रांची के सिरम टोली स्थित सरना स्थल पर सरहुल की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. इस दिन आदिवासी समाज के सदस्य नए साल की शुरुआत करते हैं। इस त्योहार को मनाने के बाद खेती भी शुरू की जाती है।

 

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सरहुल की रस्मों में लोग 3 दिन पहले से ही शामिल हो जाते हैं। पहान विशेष अनुष्ठान करते हैं। इस दौरान स्थानीय देवता की पूजा की जाती है और आशा है कि आने वाला वर्ष आनंदमय होगा। भूमि और खलिहानों का हमेशा स्टॉक किया जाए। पूजा के दौरान सरना स्थल पर मिट्टी के घड़े में जल रखा जाता है। जिसका स्तर देखने के बाद पाहन आने वाले मौसम के बारे में भविष्यवाणी कर देता है। पूजा के समापन के बाद, एक फूल खोसी अनुष्ठान किया जाता है। यह पर्व आदिवासी समाज के लिए बहुत खास होता है। सरहुल को लेकर आज शहर में धूम मची हुई है। पिछले कई दिनों से प्रशासन और लोगों द्वारा इस पर्व की तैयारी चल रही थी. और आज सरहुल शोभायात्रा निकाली जाएगी। इस दौरान प्रशासन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। शहरवासियों के लिए इसके साथ ही रूट भी बदल गया है। बता दें कि सरहुल की शोभायात्रा शुक्रवार को राजधानी से होकर गुजरेगी, जिसके चलते जुलूस में शामिल होने वाले वाहनों को ही प्रशासन द्वारा निर्धारित मार्ग से प्रवेश करने की अनुमति होगी.