संसद की सुरक्षा

भारतीय संसद पर किसी ने हमला करने की कोशिश की है। दूसरे बार की घुसपैठ को भले ही तकनीकी तौर पर हमला नहीं करार दिया जाए लेकिन इससे यह तो तय हो ही गया है कि भारतीय संसद आज भी कितनी असुरक्षित है। बगैर किसी विवाद के आराम से कुछ लोग संसद के भीतर दाखिल हो जाते हैं और ठीक समय देखकर अचानक स्पीकर के आसन तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।

यह दूसरी बार है कि भारतीय संसद पर किसी ने हमला करने की कोशिश की है। दूसरे बार की घुसपैठ को भले ही तकनीकी तौर पर हमला नहीं करार दिया जाए लेकिन इससे यह तो तय हो ही गया है कि भारतीय संसद आज भी कितनी असुरक्षित है। बगैर किसी विवाद के आराम से कुछ लोग संसद के भीतर दाखिल हो जाते हैं और ठीक समय देखकर अचानक स्पीकर के आसन तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।

संसद में हंगामा शुरू

गनीमत यही रही कि उनके पास घातक हथियार नहीं थे लेकिन हथियारों से भी खतरनाक चीजें आज के वैज्ञानिक युग में प्रचलन में आ गई हैं। सवाल यह है कि संसद पर हमले की 22 वीं सालगिरह के दिन ही फिर से संसद में हंगामा शुरू हो जाता है, दो बाहरी लोग खास किस्म की गैस से वहां मौजूद सांसदों में सनसनी भर देते हैं और पूरा का पूरा सिस्टम कथित सुरक्षा के नाम पर लकीर पीटता रह जाता है। इसे क्या कहें। दुखद बात यह भी है कि एक खालिस्तानी नेता ने ठीक उसी तारीख को भारतीय संसद पर हमला करने की धमकी पहले से दे रखी थी।

जाहिर है कि दिल्ली पुलिस के पास पहले से ही उसकी धमकी का अलर्ट मिल चुका था। फिर भी कुछ लोग अपने मकसद में कामयाब हो गए। किसी के साथ कोई हादसा नहीं हुआ यह गनीमत रही। लेकिन देश के लिए यह बेहद चिंता की बात है कि जहां देश का भविष्य तय किया जाता है, उस सबसे बड़े सदन की सुरक्षा ही अगर खतरे में है तो फिर मुल्क की सुरक्षा के बारे में निश्चिंत कैसे हुआ जाए।

ईमानदारी से समीक्षा जरूरी

यह गंभीर मसला है जिसपर सरकार की नीति बहुत साफ होनी चाहिए। यदि किसी का दावा है कि इस तरह की घटना के पीछे कोई शरारती दिमाग काम कर रहा है तो यह पूरी तरह झूठ है। यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया कुकृत्य है जिसमें हो सकता है कि कुछ ऐसे भी चेहरे शामिल हों जो भारत से दूर कहीं किसी दूसरे देश में रहते हैं। फिलहाल जो घटना हुई है तथा जिस तरह संसद की सुरक्षा को सवालों के घेरे में लाया गया है, उसकी ईमानदारी से समीक्षा जरूरी है।

इस मसले पर विपक्षी सांसदों की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि भारत की परंपरा रही है कि जब भी देश पर कोई संकट आता है तो संसद में मौजूद हर दल एक साथ खड़ा हो जाता है। जिस तरह की साजिश रची गई है उससे यही लगता है कि दुश्मन कमजोर नहीं है। उसने बहुत शातिराना अंदाज में अपना काम किया है। जरूरत यही है कि संसद से एक ही सुर में आवाज निकले जिससे दुश्मन के खूनी दांतों को तोड़ा जा सके। वैसे, सुरक्षा में चूक का मसला फिर भी कायम रहेगा।

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