सूचना पर सेंसर या कुछ और

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लेकर लोग तरह-तरह की बनावटी खबरें भी दिनभर परोस रहे हैं

पहले इस बात का संकेत दिया जा चुका था कि ऑनलाइन समाचारों या सूचना की बढ़ रही गति पर विराम लगाने की सोच सरकारी गलियारे में पनप रही है। जनवरी में ही सरकार से आईटी मंत्रालय के लोगों को सुझाव आया था कि ऑनलाइन खबरों का संचार तेजी से हो रहा है जिससे जनता के बीच गलत संकेत भी जाते हैं। इन खबरों की सच्चाई जानने के लिए पत्र सूचना कार्यालय या पीआईबी को ही सरकार दायित्व देना चाह रही थी। लेकिन किन्हीं खास कारणों से यह काम अब पीआईबी को नहीं देकर सरकार की ओर से नियुक्त फैक्ट-फाइंडिंग टीम को दी जा रही है।

इस टीम के लोग केंद्र सरकार से जुड़ी हर खबर के बारे में अपने स्तर से तफ्तीश करेंगे। तफ्तीश के बाद यह तय किया जाएगा कि खबर कितनी सही या गलत है। अगर कहीं किसी के खिलाफ जानबूझकर या मनगढ़न्त झूठ परोसने की जानकारी इस टीम को मिली तो संबंधित ऑनलाइन परिसेवा दे रही कंपनी को सूचित किया जाएगा। वह कंपनी अर्थात फेसबुक, ट्वीटर, इस्टाग्राम वगैरह ही संबंधित व्यक्ति से ऐसी भ्रामक खबर हटाने को कहेगी। और यदि इसके बावजूद वह खबर हटाई नहीं जा रही है तो उक्त ग्राहक के खिलाफ कार्रवाई होगी।

प्रथम दृष्टया यह बात सही भी लगती है क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लेकर लोग तरह-तरह की बनावटी खबरें भी दिनभर परोस रहे हैं। लेकिन कुछ लोग इस कदम के विरुद्ध भी बोलने लगे हैं। उनका कहना है कि फैक्ट-फाइंडिंग या सत्यान्वेषी टीम के गठन के पीछे केंद्र की एनडीए सरकार की वही सोच है जो इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी की थी। उस दौरान भी मीडिय़ा के मुंह पर ताले जड़ दिए गए थे और सरकार की ओर से तय किए गए बाबुओं की इजाजत के बगैर अखबारों में खबरें नहीं छापी जा सकती थीं। सरकार के विरुद्ध सोचने वाले मीडिय़ा संस्थानों को हर तरीके से परेशान किया जाता था। मीडिया जगत से जुड़े लोगों की आज आम धारणा यही है कि एनडीए सरकार भी जानबूझकर मीडिया क्षेत्र को पीछे धकेलने का काम कर रही है। बहरहाल, पत्रकारों की संस्थाएं लगातार इस सरकारी पहल का विरोध कर रही हैं और सरकार की ओर से भरोसा दिलाया जा रहा है कि किसी के भी खिलाफ शत्रुभाव रखकर किसी खबर की समीक्षा नहीं की जाएगी।

सरकारी सफाई और मीडिया जगत से जुड़े लोगों की आशंका के बीच कम से कम इतना जरूर सही है कि सोशल मीडिया और ऑनलाइन खबरों के नाम पर जो भी परोसा जा रहा है, वह स्वस्थ नहीं है। लोकतांत्रिक मूल्यों को काबिज रखने के साथ ही सांस्कृतिक मूल्य बोध को जीवित रखना किसी भी सरकार का दायित्व बनता है। इस मामले में एनडीए की सरकार सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों को सुदृढ़ रखने में समर्थ होगी, ऐसा विश्वास है। लेकिन सरकार को इस मामले में अपनी बात स्पष्ट करनी चाहिए। सत्यान्वेषण के नाम पर बेवजह किसी को परेशान करना या लोकतंत्र में किसी की आवाज को दबाना भी अलोकतांत्रिक कदम ही कहा जाएगा। इस बात की उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार जिस टीम का गठन करने वाली है वह सही मायने में लोकतंत्र की पोषक हो और देश या समाज अथवा सरकार के बारे में अफवाहों के जाल काटने में सक्षम हो।

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