गंगा की रक्षा का सवाल

भारत के एक लंबे भू-भाग को जीवन देने वाली गंगा के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है जिसे लेकर समय-समय पर सरकार के अलावा स्वयंसेवी संगठनों में भी बेचैनी देखी जाती है। ताजा घटना में एनजीटी या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा की बिगड़ती सेहत पर चिंता जताई है।

किसी भी सभ्यता के जीने की बुनियादी शर्तों में ऑक्सीजन के बाद पानी का ही स्थान आता है। दुनिया में ऐसे कई इलाके रहे हैं जहां कभी पानी का अकूत भंडार था लेकिन कालांतर में भंडार सूखता चला गया और कई शहर वीरान होते चले गए। भारत को कम से कम प्रकृति ने ऐसा वरदान दिया है कि यहां नदियों का जाल बिछा हुआ है जिससे लोगों को जीवन मिले। इस जीवनदायिनी शक्ति के सबसे बड़े स्रोत के तौर पर भारत में गंगा को शामिल किया जाता है और यही वजह है कि भारतीय परंपरा में गंगा को माता का दर्जा दिया गया है। यहां तक कि किसी भी मांगलिक कर्म में गंगा जल को ही अनिवार्य बताया जाता है।

ऐसे में भारत के एक लंबे भू-भाग को जीवन देने वाली गंगा के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है जिसे लेकर समय-समय पर सरकार के अलावा स्वयंसेवी संगठनों में भी बेचैनी देखी जाती है। ताजा घटना में एनजीटी या नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गंगा की बिगड़ती सेहत पर चिंता जताई है। सेहत सुधारने के लिए बिहार और झारखंड के कई जिलों को एनजीटी की ओर से सावधान किया गया है तथा गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं, इसकी जानकारी देने को कहा है।

मूल मार्ग में बदलाव

दरअसल एनजीटी के जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव का मानना है कि बिहार और झारखंड में जहां भू-जल को प्रदूषित किया जा रहा है, वहीं गंगा में अपशिष्ट बहाने, रेत और पत्थर का अवैध खनन करने, गंगा के मूल मार्ग में बदलाव करने तथा जलीय प्राणियों का जीवन संकट में डालने के कारण ही गंगा लगातार प्रदूषित हो रही है। इस पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। इस प्रसंग में कम से कम इतना जरूर कहा जा सकता है कि तमाम मनाही के बावजूद गंगा से अवैध बालू का उत्खनन बिहार में रोका नहीं जा सका है।

बिहार के जिन जिलों से होकर गंगा प्रवाहित होती है, उनमें से खासकर बक्सर, भोजपुर, सारण, पटना, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, मुंगेर, खगड़िया, कटिहार, भागलपुर व लक्खीसराय के अलावा झारखंड का साहेबगंज शामिल है। लोगों की धार्मिक आस्था के मद्देनजर कई बातें ऐसी हैं जिन्हें जानकर भी प्रशासन की ओर से मनाही नहीं की जाती है। मिसाल के तौर पर सारे मांगलिक-अमांगलिक कर्म की गवाह यूपी-बिहार-झारखंड या पश्चिम बंगाल में गंगा को ही बनाया जाता है। इसमें टनों फूल-पत्ते गंगा की धारा में विसर्जित करने की अजीबोगरीब परंपरा रही है, जिस पर रोक नहीं लग पा रही है।

नदी नहीं, भारत की आत्मा

इसके अलावा कई शहरों का कचरा और प्रदूषित जल भी गंगा में ही बहाया जाता है। कुछ रासायनिक पदार्थ भी गंगा में बहाए जा रहे हैं जिससे गंगा के जल की गुणवत्ता प्रभावित होती जा रही है। इसके साथ तमाम सरकारी व्यवस्था को ठेंगा दिखाकर कुछ तत्व लगातार अवैध रूप से उत्खनन का काम कर रहे हैं जिसका असर गंगा के प्रवाह के साथ ही जल की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। नदी की राह रोककर या किसी दूसरे मार्ग से उसे घुमाने का कुफल क्या हो सकता है, इसकी बानगी उत्तराखंड के लोगों ने देख ली है। इसके बावजूद यदि बिहार और झारखंड में प्रशासन सतर्क नहीं होता है तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। एनजीटी की चेतावनी पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। गंगा बची रही तो भारतीय संस्कृति बचेगी। यह केवल एक नदी नहीं, भारत की आत्मा है। हर हाल में इसकी रक्षा जरूरी है।

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