बीतते हुए साल को शब्दकार ने काव्यांजलि से दी भावी विदाई

रांची : विगत दिवस रांची के कांके रोड अवस्थित बाटा बिल्डिंग में शब्दकार की सदस्या अंशुमिता शेखर के आवास पर शब्दकार द्वारा जाते हुए साल को काव्यांजलि दी गई। गोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ माया प्रसाद थीं और अध्यक्षता डॉ अशोक प्रियदर्शी ने की।

गोष्ठी में शहर के गणमान्य कवि एवं कवियत्रियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ अशोक प्रियदर्शी ने रचनाकारों को सृजन के गुर सिखाए एवं उनमें क्या सुधार अपेक्षित हैं, इसकी चर्चा की तथा रचनाकारों को अलग-अलग विधाओं की रचनाओं में किस-किस तरह से सृजन करना चाहिए, किन-किन त्रुटियों से बचा जाना चाहिए एवं मंचीय कविता को किस प्रकार का होना चाहिए,

इन सभी गुरों को रचनाकारों से साझा किया। अगली मुख्य वक्ता के रूप में डॉ माया प्रसाद ने भी रचनाकारों को समझाया कि चंदिया कविताओं तथा रसूलों में किस प्रकार का गठन अपेक्षित होता है तथा उसके बगैर यह रचनाएं कर्णप्रिय तथा संप्रेषणीय नहीं कही जा सकती।

दोनों अतिथियों ने उपस्थित रचनाकारों को रचना के मर्म, उसका कथ्य, उसके सुरताल, मात्रा एवं बहाव/रवानगी के बारे में सविस्तार बताते हुए रचनाकारिता की टोह भी ली।

गोष्ठी का आरम्भ वीना श्रीवास्तव ने सरस्वती वंदना से किया। अमरेश कुमार ने अपनी रचना में जीवन के विविध विषयों को उभारा। वहीं अर्पणा सिंह ने नारी को अपनी जड़े मजबूत रखना सिखाया। तो सुनीता अग्रवाल ने जीवन में मां के होने को महसूस कराया।

कल्याणी झा ने कहा “संबंधों से अनुबंधित हम, करें स्नेह सत्कार हैं। देश सुहाना त्योहारों का, बहे प्रेम रसधार है।” मनीषा सहाय सुमन ने “नफरतों के शिकार हो रहे हैं रिश्ते, पलकों को अब भिगो रहे हैं रिश्ते।” अनुपम श्री ने कहा कि वक्त से बलवान कुछ नहीं होता।

डॉ अनुराधा ने फरमाया “जीवन की भाग दौड़ में कुछ क्षण अपने लिए भी निकाल लो।” तो नवोदित कवियत्री सोनल थेपड़ा ने फरमाया प्रेम का कैलेंडर कभी पुराना नहीं होता, क्या दिसंबर क्या जनवरी का महीना।”
और “ख्याल में मैं तुझे भरे रहती हूं, बस इसीलिए मैं खुश रहती हूं।”

कविता रानी सिंह ने कहा हूं मैं भी शामिल मजलिस में, जिन्हें जिंदगी से है शिकायत।” शहर के प्रख्यात कवियत्री प्रतिमा त्रिपाठी ने फरमाया “वर्ष विदा हो रहा देकर अनुपम याद, किंतु ध्यान इतना रखना, बना रहे संवाद” एक और नवोदित कवि पंकज पुष्कर ने कहा “टूट रहा हूं धीरे-धीरे, कायनात में शोर नहीं है।

उथल पुथल है अंतर्मन में, व्याकुल मन के शांत नीर में, डूब रहा हूं धीरे-धीरे।” प्रवीण परिमल ने एक मगही रचना का सस्वर पाठ करते हुए एक प्रेयसी का अपने प्रेमी की जिंदगी में किसी सौतन के आ जाने का बड़ा मार्मिक वर्णन किया।

प्रणव प्रियदर्शी ने भी अपने संवेदनशील रचनाओं से श्रोताओं का दिल मोह लिया। अपराजिता मिश्रा ने इन शब्दों में अपनी बात कही न “जाने कौन-सा सफर है यह, रूह पर भारी-सा वजन है यह!”

जयमाला ने इन शब्दों में अपनी बात कही “पत्ता ही तो गिरा था, परिंदे तो अभी फुदक रहे थे पेड़ की शाखों पर!” नंदा पांडे ने फरमाया “जा रही हूं कभी नहीं आऊंगी, छोड़ आऊंगी अपना सब कुछ, अपना प्रेम, अपना रूदन, करुण विलाप, सब कुछ।” रश्मि शर्मा ने कहा “कुछ और लंबी हो जाएगी यादों की फेहरिस्त, देखते ही देखते गुजर जाएगा यह साल भी!”

राजीव थेपड़ा ने हर बार की तरह इस बार भी अपने गीत से महफिल को सजाया “गीला-सा मन कहे हैं कुछ, सुनकर जिसे बहे है कुछ। बेताब दिल है ये बहुत, रह-रह के ये कहे है कुछ” वीना श्रीवास्तव ने इन शब्दों में अपनी कविता को धार दी- ‘ताकि एक स्वच्छ,

भ्रष्टाचार मुक्त कलेंडर, सौंप सकें अगले वर्ष को’ और अंत में खूबसूरत मंच संचालन करते हुए संगीता गुजारा टॉक ने भी अपनी बात कही – दिसंबर मुझे अच्छा नहीं लगता, जाता हुआ कोई भी हो, मुझे अच्छा नहीं लगता। धन्यवाद ज्ञापन अंशुमिता शेखर ने किया।

 

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