विकल्प तलाशने का वक्त

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे जरूरी होता है कानून का शासन। और कानून का राज कायम करने के लिए संविधान ने जो नियम तय किए हैं, उनका अनुसरण किया जाता है। लेकिन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में दुर्भाग्य से एक लंबे अरसे से कानून का शासन कायम करने के लिए हथियारों का सहारा लिया जाता रहा है। ताजा घटना में भी वही हो रहा है। मणिपुर में सांप्रदायिकता की आग लगभग दो महीने से जल रही है। सरकार की ओर से कई बार कोशिश की गई। खुद गृहमंत्री अमित शाह ने भी मणिपुर का दौरा किया तथा वहां के लोगों के साथ बैठकें भी की। लेकिन किसी भी सूरत में वहां शांति बहाली नहीं हो सकी है। कुकी और मैती विद्रोहियों को शांत करने के लिए भारत सरकार ने सेना भी उतारी, लेकिन अभी भी वहां शांति कायम नहीं हो सकी है। सेना की ओर से भी कहा जा रहा है कि मणिपुर की समस्या का राजनैतिक समाधान खोजने का समय आ गया है। और समझा जाता है कि सेना की बातों के मद्देनजर ही सरकार ने सर्वदलीय बैठक का आयोजन भी किया था। पहली बैठक में कुछ काम की बातें सामने आई हैं जिन्हें अमल में लाने का प्रयास हो रहा है। लेकिन समझने की जरूरत है कि मौलिक समस्या कहां है। केवल मैती नामक जातियों के एक समूह को एससी या अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग को लेकर इतना बड़ा बवेला नहीं मच सकता। जरूर इसके पीछे कोई गहरी साजिश है। और साजिश कहां से तथा कैसे हो रही है-इसकी जानकारी दिल्ली को होनी चाहिए।

दरअसल मणिपुर की सीमा पर भारत-चीन के बीच बसे कई इलाके हैं जिनसे होकर लोगों की आवाजाही होती है। माले को एक खास इलाका समझा जाता है जहां से होकर नशे की तस्करी लंबे समय से होती रही है। यहां की जनजातियां भी इस कारोबार में शामिल रही हैं। प्रसंगवश उल्लेखनीय है कि एनडीए के पहले संयोजक रहे जॉर्ज फर्नांडिस ने इसी माले की सीमा को सील करने की हिदायत दी थी। लेकिन तब यह बात आई-गई खत्म हो गई थी। आज माले की सीमा से चीन का पैसा भारत में प्रवेश कर रहा है। दूसरी ओर कुकी जनजातियों का एक समूह म्यांमार से होकर मिजोरम के रास्ते मणिपुर में प्रवेश कर रहा है। पहले से मणिपुर में रह रहे कुकियों में हिंसक प्रवृत्ति नहीं थी, लेकिन म्यांमार की सीमा से भारत में दाखिल हो रहे कुकी मणिपुर की समस्या बढ़ा रहे हैं। घरों में लूटपाट के अलावा आम नागरिकों की हत्या व सरकार तथा सेना के लोगों पर हमला करना इनकी फितरत बन गई है। इसके लिए जरूरी है कि समाज को अनुशासनिक जंजीरों में बांधा जाए। जाहिर है कि अनुशासन लाने के लिए राजनेताओं के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन और समाज के वृहत्तर वर्ग का सहयोग अपेक्षित होगा। मणिपुर में मरने-मारने को तैयार लोग देश के आम नागरिक हैं कोई आतंकवादी नहीं, जिन्हें देखते ही गोली मार दी जाए। केंद्र सरकार ने सर्वदलीय बैठकों का जो रास्ता अपनाया है उसकी सराहना की जानी चाहिए। देर से ही सही, सरकार ने सही कदम उठाया है। सर्वदलीय बैठकों के जरिए समाज को कठोर संकेत देने के साथ ही आम मणिपुरी लोगों के घावों पर मरहम भी लगाने की जरूरत होगी। इस दिशा में सावधानी जरूरी है। कुछ लोग हैं जो विदेशी पैसे के बूते वृहत्तर मिजोरम के गठन की दिशा में साजिश रच रहे हैं। ऐसे तत्वों की मंशा केवल सर्वदलीय बैठकों से ही कुचली जा सकेगी। केंद्र सरकार इस मामले में सजग रहकर ही कदम उठाएगी-ऐसी अपेक्षा रहेगी।

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