वित्तीय मामलों में विश्वविद्यालयों को राज्यपाल से लेनी होगी सहमति

इस टकराव को लेकर संशय के बादल मंडराने लगे हैं

कोलकाता : राज्यपाल सीवी आनंद बोस के आगमन के बाद से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि लंबे समय से चल रहे राज्य सचिवालय का टकराव खत्म होता दिख रहा था, लेकिन अब फिर इस टकराव को लेकर संशय के बादल मंडराने लगे हैं।

हाल ही में जारी की गई अधिसूचना के अनुसार राज्य के विश्वविद्यालयों को किसी भी वित्तीय मामले में राजभवन की सहमति लेनी होगी। कुलपतियों को विश्वविद्यालयों के समग्र कामकाज पर साप्ताहिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है।

राजभवन से सभी कुलपतियों के नाम एक पत्र भेजा गया है। इस पत्र में कहा गया है कि साप्ताहिक रिपोर्ट सीधे राजभवन को भेजी जाए। हर हफ्ते विश्वविद्यालय में क्या हुआ है, इसकी जानकारी वीसी को ही देनी होगी। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक सप्ताह की रिपोर्ट सप्ताहांत तक राजभवन को भिजवाई जाए। राजभवन से किसी भी बड़े वित्तीय लेनदेन के लिए पूर्व स्वीकृति लेनी पड़ती है। कुलपति बिना विकास भवन को सूचित किए सीधे राजभवन में राज्यपाल से संवाद कर सकते हैं।

दरअसल अब तक अपनाई गई प्रणाली के अनुसार आमतौर पर राज्य के विश्वविद्यालय राज्य शिक्षा विभाग के माध्यम से नियुक्ति-संबंधी या वित्तीय मामलों जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं और बाद में राज्यपाल की सहमति के लिए मामले को भेजते हैं।

 टकराव शुरू?

हालांकि, गुरुवार की शाम को जारी किए गए अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि वित्तीय निर्णय जैसे महत्वपूर्ण मामलों में राज्य के विश्वविद्यालयों को राजभवन की सहमति लेनी होगी।

प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, उच्च शिक्षा विभाग ने इस संबंध में कानूनी सलाह लेना शुरू कर दिया है। वहीं, विभिन्न खेमों का सवाल है कि तो क्या धनखड़ जैसे अब नए राज्यपाल से राज्य का टकराव शुरू होने वाला है?

वहीं, इस फैसले का स्वागत करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि अधिसूचना राज्य के शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार के कई मामलों के बीच सही कदम है।

हालांकि, तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सौगत राय ने कहा कि यह खुशी की बात है कि राज्यपाल शिक्षा के मामलों में रुचि ले रहे हैं, लेकिन यह बेहतर होगा कि वह इस मामले में राज्य शिक्षा विभाग के साथ समन्वय बनाए रखें।

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