रांचीः महापर्व छठ पर सूर्य देव को समर्पित ठेकुआ भारत का सबसे प्राचीन मिष्ठान है। शुरुआत से अब तक इसके स्वरूप और बनाने की विधि में भी ज्यादा बदलाव नहीं आया है। झारखंड-बिहार और नेपाल के तराई वाले क्षेत्रों में घर-घर यह पकवान बनाया जाता है। ठेकुआ यानी ठोककर बनाया जाने वाला पकवान, जिसे ठकुआ, ठेकरी, खजूर और रोठ भी कहा जाता है। करीब 3700 साल पहले यानी ईसापूर्व 1500-1000 ऋग्वेदिक काल में ठेकुआ जैसे मिष्ठान ‘अपूप’ का उल्लेख मिलता है। गेहूं के आटे में गुड़, दूध व घी को मिलाकर इसे औषधि के रूप में बनाया गया था। तभी से भगवान सूर्य की उपासना में इसे भोग के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। ऋग्वेद की सूर्य को निवेदित अभितपा ऋषि की एक ऋचा (10।37।4) है, जिसमें ऋषि कहते हैं… हे सूर्य! आप जिस ज्योति से अंधकार का नाश करते हैं, उसी से हमारा समग्र अन्नों का अभाव, रोग और कुस्वप्नों के कुप्रभाव को दूर कीजिए। इससे पूर्व भोग में गुड़, दूध, घी जैसे पदार्थ ही उपासना में अर्पित किए जाते थे।
ऐसी मान्यता है कि ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने वज्रासन और बोधिवृक्ष के आसपास 49 दिनों तक उपवास रखा था। बौद्ध ग्रंथ विनय पिटक के मुताबिक तब दो व्यापारी तापस सु और भल्लिका व्यापार करने के लिए उत्तरापथ जा रहे थे। उन्होंने बुद्ध को आटा, गुड़ ओर मधु से निर्मित ठेकुआ जैसा पकवान दिया था, जिस खाकर उन्होंने उपवास खत्म किया था।