भारतीय उद्योग से खरीदे जा सकेंगे 814 करोड़ रूपये के 164 रक्षा आइटम्स

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दिल्ली : रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिये 814 करोड़ रुपये के आयात वाले 164 आइटम्स को स्वदेशिकृत कर अधिसूचित कर लिया गया है। यह स्वदेशी वस्तुएं अब केवल भारतीय उद्योग से ही खरीदी जाएंगी। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक अब तक 2,570 करोड़ रुपये की लागत वाले विभिन्न आइटम्स को स्वदेशी तौर पर तैयार करने या खरीदने का निर्णय लिया जा चुका है जिसमें करीब ढाई हजार से अधिक अलग-अलग कलपुर्जे, उपकरण व अन्य वस्तुएं शामिल हैं।

जानकारी के अनुसार इन वस्तुओं का स्वदेशीकरण रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों डीपीएसयू द्वारा सूक्ष्म, मध्यम और लघु उपक्रम (एमएसएमई) सहित उद्योग भागीदारों के माध्यम से या इन-हाउस उत्पादन से प्राप्त किया गया है। वहीं अब इन स्वदेशी वस्तुओं की डीपीएसयू वॉर सूची को सृजन पोर्टल पर उपलब्ध किया गया है। बता दें कि डीडीपी ने डीपीएसयू के लिए लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट, स्पेयर्स और कंपोनेंट सहित 4,666 वस्तुओं वाली चार सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची को अधिसूचित किया है जिसमें पहला पीआईएल-2,85, दूसरा पीआईएल-107, तीसरा पीआईएल-780, चौथा पीआईएल 928 है। इससे पहले 1756 करोड़ के आयात प्रतिस्थापन मूल्य के साथ कुल 2,572 वस्तुओं के स्वदेशीकरण को अधिसूचित किया गया था।

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वहीं अब इन 164 अतिरिक्त वस्तुओं की अधिसूचना के साथ डीडीपी की इस सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची से दिसंबर 2022 तक स्वदेशी वस्तुओं की कुल संख्या 2,736 हो गई है जिसका आयात प्रतिस्थापन मूल्य 2,570 करोड़ रुपये है। गौरतलब है कि एक दिन पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बेहतर टेक्नोलॉजी हासिल करने पर जोर देना शुरू किया था। रक्षा मंत्री का कहना था कि अगर शत्रुओं के पास अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी है तो यह हमारे लिए भविष्य में चिंता का कारण हो सकता है। रक्षा मंत्री का कहना है कि साइबर एवं अंतरिक्ष से संबंधित उभरते खतरों से निपटने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी में प्रगति की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा युद्धकला तेजी से विकसित हो रहे हैं। गैर-काइनेटिक या संपर्करहित युद्धकला जिसे आज दुनिया देख रही है, उससे निपटने के लिए पारंपरिक पद्धतियों के अतिरिक्त उन्नत प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति करने की आवश्यकता है। बता दें कि राजनाथ सिंह ने महाराष्ट्र के पुणे स्थित डीआईएटी के 12वें दीक्षांत समारोह के दौरान अनुसंधान संस्थानों को संबोधित करते हुए यह कहा था।