चीन की 36 कंपनियां हुईं ब्लैकलिस्ट

चीन की इन कंपनियों से अमेरिका को खतरा

91

नई दिल्ली। आने वाले समय में अमेरिका और चीन एक बार फिर आमने सामने आ सकते हैं। दरअसल अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने चीन की उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्र की 36 कंपनियों को निर्यात नियंत्रण वाली काली सूची (Blacklist) में डाल दिया है। राष्ट्रीय सुरक्षा, अमेरिकी हितों और मानवाधिकारों पर चिंता के चलते यह कदम उठाया गया।

यह भी पढ़े :  थाईलैंड की राजकुमारी को आया हार्ट अटैक

बता दें कि इन कंपनियों में विमानन उपकरण, रसायन और कंप्यूटर चिप विनिर्माता शामिल हैं। ज्ञात रहे कि किसी कंपनी को व्यापार एन्टिटी लिस्ट में शामिल करने का मतलब है कि उनके साथ व्यापार करने वाली किसी भी अमेरिकी कंपनी के निर्यात लाइसेंस को रद्द कर दिया जाएगा।

माना जा रहा है कि चीन की सेना को अत्याधुनिक कंप्यूटर चिप और हाइपरसोनिक हथियारों जैसी उन्नत तकनीकों को हासिल करने से रोकने के लिए ये प्रतिबंध लगाए गए हैं। जिन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनकी सूची शुक्रवार को प्रकाशित की गई है।

गौरतलब है कि चीन की कंपनियों पर सख्ती की शुरुआत ट्रंप के कार्यकाल में शुरू हुई थी और ये अब जो बिडेन का कार्यकाल में भी जारी है। जिन कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया गया है उसमें वूहान स्थित कंप्यूटर चिप मेकर यांग्त्जी मेमोरी टेक्नोलॉजी और उसकी जापानी यूनिट शामिल है। अमेरिकी सरकार ने कहा है कि ये दोनो कंपनियां ऐसी गतविधियों में लिप्त पाई गई हैं जिनसे देश की रक्षा को खतरा उतप्न्न हो सकता है। कहा जा रहा है कि यांग्त्जी और एक अन्य कंपनी हेईफेई कोर स्टोरेज हुआवे टेक के सप्लायर की तरह काम कर सकती है, जो कि अपने सेग्मेंट की सबसे बड़ी कंपनी है। बता दें कि पिछले महीने ही अमेरिका ने चीन की कंपनी हुआवे और जेडटीई पर प्रतिबंध लगा दिए थे। वहीं जिन अन्य कंपनियों और संस्थानों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, माना जा रहा है कि उनके चीन की सरकार या सरकारी संस्थानों के साथ समझौते हैं।

इसके साथ ही इन कंपनियों में से कुछ के ईरान के साथ समझौतों की आशंका भी जताई जा रही है। सरकार को डर था कि ये कंपनियां ईरान को जरूरी उपकरण या तकनीकें मुहैया करा रही हैं जो कि बाद में अमेरिका के ही खिलाफ इस्तेमाल की जा सकती हैं। वही एक अन्य कंपनी को इसलिए प्रतिबंधों की श्रेणी में डाला गया है कि उसपर चीन के अल्पसंख्यकों की निगरानी से जुड़ी तकनीकें देने का आरोप लगा है। फिलहाल चीन की तरफ से कोई इस मामले पर कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।