एक ऐसा प्रदेश जहां लूटा जाता है पहाड़

आईएएस पूजा सिंघल से लेकर मुख्यमंत्री तक इसकी आंच पहुंच चुकी है

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रांची: झारखंड का राजनीतिक गलियारा खनन घोटाला को लेकर गर्म है। आईएएस पूजा सिंघल से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक इसकी आंच पहुंच चुकी है।

विधायक सरयू राय की माने तो यह घोटाला नया नहीं है। तत्कालीन सरकारें भी खनन माफिआयों से मिलकर अवैध खनन करते रही है, जिससे सैकड़ों करोड़ के अवैध खनन हुए हैं।

मालूम हो कि झारखंड के पांच जिले क्रमशः साहेबगंज, गुमला, लातेहार, लोहरदगा और कोडरमा के लगभग तीन दर्जन से अधिक पहाड़ गायब हो गये हैं।

इसके अलावा लगभग दस दर्जन से अधिक पहाड़ गायब होने के कगार पर हैं। इस संबंध में मामला न्यायालय में भी है। न्यायालय ने यह भी कहा है कि पहाड़ की चोरी भी होती है, यह झारखंड में देखने को मिलता है।

प्रदेश के साहेबगंज जिले में सकरी गली के गडवा पहाड़, पंगडो पहाड़, अमरजोला पहाड़ का कुछ अता-पता नहीं है।

प्रभु श्रीराम के भक्त हनुमान की जन्मस्थली माना जाने वाला गुमला जिले का जैरागी, सेमरा, निनई, बरिसा पहाड़ भी गायब है। लातेहार जिले का नरैना, कूरा, सोतम, ललगडी, खालसा, बरियातू डेमू, बानपुर, दुलिया, तेहड़ा, साधवाडीह, लंका, कोये, जेरूआ, राजदंडा, जोभीपाट, कुकुपाट, टांगरी, धांगरी, टोंगरी पहाड़ का नामोनिशान नहीं है।

कोडरमा जिले का डोमचांच, मसनोडीह, ठाप, पडरिया, उदालो तथा सिरसिया पहाड़ के एक पत्थर भी नजर नहीं आते हैं। वहीं लोहरदगा जिले के ओस्था टोंगरी, उमरी और अरकोसा पहाड़ गायब हो गये हैं।

लोहरदगा के अस्सी वर्षीय बैद्यनाथ राम बताते हैं कि बचपन में वे लोग इन पहाड़ों पर खेलने जाते थे। लेकिन आज वह खेत बन गया है।

माफिया जमीन खोदकर पत्थर निकाल लिए हैं। ग्रामीणों की माने तो पहाड़ को काटने में जिन मजदूरों को लगाया जाता है उन्हें सिलकोसिस जैसी खतरनाक बीमारी होती है, जिससे उनकी मौत हो जाती है।

पर्यावरण विद अजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि एक पहाड़ के बनने में कम से कम एक करोड़ साल लगते हैं। पृथ्वी को बने लगभग साढ़े चार अरब साल हो गये हैं। मनुष्य को वर्तमान रहन-सहन काफी बदल गया है, जिसका कोझ पृथ्वी पर ही पड़ रहा है।

अब पृथ्वी अंदर ही अंदर खौल रही है। इसका परिणाम क्या होगा अभी कल्पना करने से रूह कांप जा रहा है। इंसान के आधुनिक रहन – सहन पर सरकार ने नकेल नहीं कसे तो मनुष्य का जीवन कठिन हो जायेगा।

सूत्रों पर भरोसा करें तो राज्य के साहेबगंज के नासा पहाड़, धोकुटी, गुरमी पहाड़, हजारीबाग के करमाली, सिझुआ, नारायणपुर, बेडम, कुबरी, महावर, असिया, शाहपुर, आराभुसाई पहाड़, लोहरदगा का बगजू तथा कोराबे पहाड़,

कोडरमा का चंचाल पहाड़, पलामू का विशुनपुरा पहाड़, मुनकेरी पहाड़ सेमरा पहाड़, खोरही पहाड़ विलुप्त के कगार पर हैं।

पहाड़ों की चोरी में भले ही पांच जिलों का नाम आता हो, लेकिन यह चोरी झारखंड के लगभग प्रत्येक जिलों में है। संथाल परगना का साहेबगंज और पाकुड़ जिला तो पत्थर खनन का हब बन गया है।

कुछ पहाड़ को राज्य सरकार टेंडर के माध्यम से लीज पर दिया है तो कुछ को माफिया स्थानीय लोगों को मिलाकर अवैध खनन में मस्त हैं। राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी कहते हैं साहेबगंज में प्रतिदिन लगभग दो हजार ट्रक अवैध गिट्टी की ढुलाई होती है।

बहरहाल प्राकृतिक सौंदर्यता जंगल और खनिजों से भरपूर झारखंड को खनन माफिआयों से नहीं बचाया गया तो परिणाम बुरे होंगे। पर्यावरणविद अजय कुमार श्रीवास्तव यह भी कहते हैं कि झारखंड में ज्वालामुखी नहीं फट सकता, इसलिए यहां पहाड़ भी नहीं बन सकते। इसलिए यहां पहाड़ को बचाना ही होगा।