मगर हम नहीं सुधरेंगे स्वामीजी

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रेस्पेक्टेड स्वामीजी महाराज,
आज आपकी 161 वीं जयंती पर नमन। आपने बहुत कोशिश की। विश्व-बंधुत्व का पाठ पढ़ाया। सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका का संबोधन सिखाया। खुद को हिंदू कहकर संबोधित किया।

भारतीय मनीषा का परिचय पूरी दुनिया को दिया। दुनिया ने बहुत कुछ हो सकता है कि आपकी बातों से सीख भी लिया हो। लेकिन हमने कुछ ज्यादा सीखा।

यह बात अलग है कि इतने सालों में हम थोड़े ढीठ हो गए हैं। अब हमें बुराई कभी बुरी नहीं लगती। किसी का गला काट देना आसान लगता है। जरूरत पड़ी तो हम गोली भी मार देते हैं अपनों को।

आपने मानव सेवा का मंत्र दिया था। हमने भी सेवा करने की सोची है। सेवा के लिए ही चंदे वसूलते हैं हम, लेकिन लोग हैं कि सेवा लेना ही नहीं चाहते। ऐसे में भला हम क्या करें।

चंदा के पैसे खुद डकार जाते हैं। अपने ऐशोआराम का इंतजाम उसी से कर लिया करते हैं। आखिर अपनी सेवा भी तो ईश्वर की ही सेवा है।

देश की चिंता आप मत करना। हम चैन से जी रहे हैं और हमारी आने वाली पीढ़ियां भी ब्रिलिएंट ही होंगी। ब्रिलिएंट बनाने की तरकीब आपके जमाने में लोगों को कम आती थी क्योंकि तब गोरे अंग्रेज थे। आज काले अंग्रेज हैं, ये उनसे भले हैं। हमारी अपनी जुबान में बोलते हैं और खूब ख्याल रखते हैं हमारा।

आपको चिंता थी शिक्षा और स्वास्थ्य की। वह चिंता भी हमने दूर कर ली है। शिक्षा की बात हो तो अब पढ़ने-लिखने का झमेला कम हो गया है, सीधे डिग्री ही खरीद लेते हैं हम।

अरे हमारे यहां तो नौकरियां भी खऱीदी-बेची जाती हैं। खरीदने पर आ गए तो हम क्या-क्या न खरीद लें।

मां-बाप के बदले हम वाइफ खरीदते हैं, जिसके साथ लाइफ कटेगी। और रह गई बात बूढ़े मां-बाप की तो उन्हें भी चैन से जीने के लिए वृद्धाश्रमों में भेज देते हैं।

अगर फिर भी वे नहीं माने तो घर से धकिया कर निकाल देते हैं। आखिर पुरानी चीजें कौन रखता है-आप ही बताइए।

और जहां तक स्वास्थ्य का मसला है, इसमें भी हमने तरक्की की है। आपके जमाने में कुछ गिने-चुने देवता रहे होंगे लेकिन आजकल देवी-देवता करोडों में हैं। देवता आखिर सोमरस ही तो पीते थे, हम भी वही पीते हैं- देशी-विदेशी दोनों ब्रांड का। इसीलिए शऱीर और मन दोनों तंदुरुस्त रहता है।

हमने संस्कृति और समाज का भी ख्याल रखा है। पूरा अमन चैन है। महिलाओं की क्या मजाल जो अकेली घर से निकल जाएं। चारों ओर नाकाबंदी कर दी है हमने। आप बेफिक्र रहिएगा। साल में एकाध बार हम आपको भी याद कर ही लिया करते हैं। अब इससे ज्यादा की उम्मीद हमसे ना करियो।

प्रणाम।

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