150 पर भी बैटिंग कर रही कलकतिया ट्राम

ऐतिहासिक घटनाओं की जिंदा गवाह

कोलकाता, अंकित कुमार सिन्हा

टन टन टन... इस ध्वनि से कोलकाता वासियों का पुराना नाता रहा है। नाता 150 साल का हो चुका है। यहां बात कर रहे हैं कोलकाता के ऐतिहासिक धरोहर ट्राम की। ट्राम और कोलकाता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों ने एक साथ इतिहास बदलते देखा। अंग्रेजी बूटों की आवाज सुनी तो आजादी की मशाल लिए क्रांतिकारियों को भी देखा। आजादी के वक्त दंगों के घाव देखे, बंटवारे को देखा और आजाद भारत  के उगते सूरज को भी देखा है। इतने सारे इतिहास का साक्षी होने का गौरव सभी को नहीं मिल पाता है।

कोलकाता में ट्राम की यात्रा को 150 साल पूरे हो गए हैं। कोलकाता की पहचान को ढो रही ट्राम अब ‘विश्राम’ लेने का इंतजार कर रही है। हालांकि डेढ़ सौ साल से यह शहर की ‘परंपरा’ रही है, लेकिन इसे ‘विरासत’ की उपाधि नहीं मिली है।

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लद गया वह दौर

शहर के ट्राम प्रेमियों को लगता है कि आने वाले दिनों में इसे संभाल कर नहीं रखा जाएगा। साल 2011 में ट्राम के 37 रूट थे और शहर में कुल 180 ट्रामें थीं। लेकिन अब महज एस्प्लानेड (धर्मतला) से गरियाहाट और टालीगंज से बालीगंज के बीच ट्राम बची है। आम्फान के बाद वो रूट भी बंद कर दिया गया जहां पहली इलेक्ट्रिक ट्राम चली थी, खिदिरपुर से धर्मतल्ला तक।

ट्राम का इतिहास

24 फरवरी 1873 को कोलकाता स्थित सियालदह से आर्मोनियम स्ट्रीट के बीच देश की पहली ट्राम सेवा शुरू की गई। उस समय ट्राम को घोड़े खींचते थे। बाद में 27 मार्च 1902 को बिजली से चलने वाली ट्राम प्रारम्भ की गई। विश्व की पहली ट्राम लाइन, आयरिश मूल के अमेरिकी जॉन स्तेफेंसों द्वारा विकसित की गई।

बहुत कम लोग ही जानते हैं कि ट्राम का संचालन पटना में भी कभी हुआ था। आधुनिकीकरण और तेज भागती जिंदगी ने इसे दुनिया की दौड़ में कहीं पीछे छोड़ दिया- महज कोलकाता ने मगर थामे रखा है। लेकिन अब लगता है कि इसकी यादें फिल्मी गानों, फिल्मों, कविताओं, कहानियों और उपन्यासों तक ही सिमट जाएँगी।

क्या कहा मंत्री ने…

ट्राम के 150 साल होने पर राज्य के परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती ने कहा कि ट्राम को नहीं हटाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते हैं कि ट्राम को दुर्गा पूजा की तरह विरासत का दर्जा मिले। आश्वासन है कि पर्यटकों को धर्मतला से विक्टोरिया ले जाने के लिए एक रूट जल्द शुरू किया जाएगा।

क्या कहते हैं लोग

अंसार अहमद 40 सालों से ट्राम चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्टाफ नहीं है, कंपनी वाले स्टाफ नहीं लेना चाहते हैं। अगर स्टाफ लिए जाएं तो बहुत से लोगों के लिए आज भी पहली पसंद ट्राम ही है। अफसोस, ट्रैफिक को तेज करने के लिए ट्राम और पटरियों को रास्ते से हटाया जा रहा है।

एक ट्राम प्रेमी (युवती) ने कहा कि ट्राम से हम कोलकाता वासियों की भावनाएँ जुड़ी हैं। यह कोलकाता की पहचान है। हम चाहते हैं कि भावी पीढ़ियों के लिए इसे कायम रखा जाए।

वहीं मनोज दास जो 35 सालों से ट्राम कंपनी ( डब्लूबीटीसी) के साथ जुड़े हुए हैं, कहते हैं कि ट्राम लाइनों को कम कर दिया है, इससे नीयत साफ झलकती है। उनका सुझाव है कि बंद करने के बजाय इसके लिए अलग से रूट तैयार करना चाहिए।

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