कोल विद्रोह के नायक पोटो हो की तस्वीर को लेकर विवाद

आदिवासी हो समाज के बुद्धिजीवी रुद्राक्ष का माला और माथे पर लाल टीका पर उठा रहे सवाल

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चाईबासा : सेरेंगसिया घाटी में जब शहीद दिवस मनाया जाता है तो पोटो हो की एक तस्वीर भी सामने रखकर उसकी पूजा की जाती है। पोटो हो की यह तस्वीर केवल शहीद दिवस के दिन श्रद्धांजलि स्थल पर दर्शन के लिए रखा जाता है। लोग उस पर पुष्प अर्पित करते हैं।
लेकिन हैरानी की बात है कि उस तस्वीर में पोटो हो को गले में रूद्राक्ष की माला और माथे पर लाल टीका लगाए दर्शाया गया है। उसके बाल भी रामायण व महाभारत के पात्रों की तरह लंबे व व्यवस्थित हैं। लेकिन हो समाज के कई लोगों का कहना है कि हो समाज में रूद्राक्ष, लाल टीके आदि धारण करने की कोई परंपरा नहीं है। जबकि पोटो हो आदिवासी हो समाज से ही ताल्लुक रखते थे। ऐसे में यह सवाल भी स्वतः उठता है कि क्या पोटो हो हिंदू धर्म से प्रभावित थे? यदि ऐसा नहीं था तो गले में रूद्राक्ष की माला और माथे पर लाल टीका लगाने का क्या मतलब है? या फिर कुछ और मतलब है? जबकि हो समाज के दिऊरियों ने बताया कि सरना धर्म में रूद्राक्ष की माला व लाल टीके का कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसे में फिर सवाल उठता है कि पोटो का धर्म क्या था? यदि सरना था तो रूद्राक्ष की माला और टीका क्यों? सबसे बड़ा सवाल तो यह भी है कि आखिर किसने यह तय कर लिया कि पोटो हो ने गले में रूद्राक्ष की माला पहनकर और माथे पर लाल टीका लगाकर कोल विद्रोह के दौरान युद्ध किया था। जैसा कि तस्वीर में दर्शाया गया है।

आदिवासी हो समाज के बुद्धिजीवी उठा रहे सवाल

हैरानी की बात तो यह भी है कि रूद्राक्ष की माला व टीके वाली इस तसवीर को शहीद दिवस के दिन ही निकाला जाता है। इस तस्वीर को दर्शन के लिए शहीद बेदी पर रखने की परंपरा हाल ही में शुरू हुई थी। बहुत पहले नहीं थी। दो साल पहले हो समाज के कुछ बुद्धिजीवियों ने इस तस्वीर पर आपत्ति जताई थी कि रूद्राक्ष की माला और लाल टीके वाली यह तस्वीर पोटो हो की बिल्कुल नहीं है। उन लोगों का तर्क था कि पोटो हो सरना धर्म से ताल्लुक रखते थे। लिहाजा वे रूद्राक्ष की माला और लाल टीके नहीं लगाते थे। वो एक आदिवासी योद्धा थे। भला रूद्राक्ष व टीके से क्या मतलब। यदि यह तर्क सही है और यह मान लिया जाए कि पोटो हो रूद्राक्ष की माला पहनते ही नहीं थे तो सेरेंगसिया घाटी में ऐसी तस्वीर की पूजा करने का क्या मतलब है? कहीं ऐसा तो नहीं कि पोटो हो को किसी और धर्म का अनुयायी बताने की साजिश रची जा रही हो। पोटो हो के बाल भी तस्वीर में ऐसे दर्शाए गए हैं मानो वो रामायण या महाभारत का कोई ऐतिहासिक पात्र हो। बहरहाल, पोटो हो का धर्म क्या था? किली (टाईटल) क्या था? ये सब हमेशा के लिए रहस्य बन गये। लगता है कि कुछ असामाजिक तत्व इसी का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। क्या अंग्रेजों को युद्ध में पानी पिलानेवाले पोटो हो के गले में रूद्राक्ष की माला पहनाकर और उसके माथे पर लाल टीका सजाकर उसको दूसरे धर्म का दिखाने का प्रयास हो रहा है? क्या पता पोटो हो सच में रूद्राक्ष की माला पहनते थे होगे। वरना सेरेंगसिया घाटी में उसको इस रूप में नहीं दर्शाया जाता। सेरेंगसिया में रूद्राक्ष वाली तसवीर किसने प्लांट किया है? पोटो हो की ऐसी विवादित तसवीर किसने बनवाकर हो समाज में लांच कर दिया यह भी रहस्य ही बना हुआ है?

किसकी है तस्वीर पोटो हो या बौड़ कुदादा की   

जिस फोटो को पोटो हो का कहकर प्रचारित किया जा रहा है, वास्तव में वह बौड़ कुदादा का फोटो है यह फोटो 1862 ईस्वी में प्रकाशित हुआ था जिसे बेंजामिन सिम्सन ने खींचा था। लंदन में प्रदर्शित हुए फोटो प्रदर्शनी में यह फोटो भी स्वर्ण पदक जीतने वाले श्रृंखला का ही हिस्सा था यही फोटो कुछ साल बाद 1868 में जॉन फोर्स वाटसन और जॉन विलियम केय की फोटो बुक की श्रृंखला द पीपल्स ऑफ इंडिया की वॉल्यूम वन के प्लेट 18 में लड़ाका कोल छोटा नागपुर के रूप में प्रकाशित हुआ था 1872 में इटी डाल्टन ने सिम्पसन की तस्वीर का इस्तेमाल डिस्क्रिप्टिव एचिनॉलेज ऑफ बंगाल में किया था डाल्टन ने इनके बारे में स्पष्ट करते हुए लिखा था कि इनकी उम्र 22 साल है ऊंचाई 5 फीट साढ़े 5 इंच है, एवं इनका किली कुदादा है। इस तरह से यह यह फोटो बोड कुदादा का फोटो है। 1908 में बोड़ की तस्वीर को एच एच रिसले ने अपने प्रसिद्ध पुस्तक द पीपल ऑफ इंडिया में फिर से उपयोग किया था। इतना ही नहीं 2016 में पॉल स्ट्रेडमर की बुक ए लैंड ऑफ देअर जन का कवर बॉय भी यही बोई कुदादा ही है। इस तरह से सिम्सन के द्वारा खींची गई यह तस्वीर हो लोगों की पहली तस्वीर रही है, और अभी तक दस्तावेजों के आधार पर उसी रूप में इसकी पहचान जिंदा है।

पोटो हो के असली नाम को लेकर भी विवाद

जहां तक कड़िया डियर बानरा (फोटो हो) की बात है, तो वह इसमें कोई दो राय नहीं कि वह सदर प्रखंड के राजा बासा गांव के ही थे। पोड़ाहाट राजा जयसिंह हमेशा राजाबासा पर आक्रमण कर टैक्स उगाही का प्रयास करते रहे थे, असफल होने पर अंग्रेजों का सहारा लेकर उसी राजाबासा से कोल्हान में घुसने का प्रयास किया जाता रहा था। इस कारण कड़िया डिबर बानरा (पोटो हो) पिता का नाम करंट सेलाए बानरा था, उनका छोटा भाई अंडिया सुरा बानरा था, ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक व्यापक योजना बनाई। चूंकि सदर प्रखंड वाला राजाबासा हमेशा कभी पोड़ाहाट राजा तो कभी अंग्रेज आ दमकते थे. इसीलिए दुर्गम जगह सेरेंगसिया घाटी, बलंडिया एवं पोकम राजाबासा, जो जैतगढ़ के बगल में है, को अपना केंद्र बना कर अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान का ऐलान किया था। ये लोग सदर प्रखंड के राजाबासा से थे इसीलिए उनके बस्ती को पोकम के लोगों ने राजाबासा ही नाम दे दिया था। 19 नवंबर 1837 को जब अंग्रेजी सेना को सेरेंगसिया घाटी में हार का सामना करना पड़ा था तब अंग्रेजों ने कड़िया डिबर बानरा(पोटो हो) को खोजने के लिए प्रयास शुरू किया कैमरा का आविष्कार 1815 के आसपास में हुआ था। 1837-38 में वो कैमरा फील्ड में लाने लायक नहीं था याने कि फील्ड में कैमरा का उपयोग संभव नहीं था स्वाभाविक रूप से उस हालात में कड़िया डिबर बानरापोटी हो) का फोटो खींचना भी संभव नहीं था, और अगर कड़िया डिवर बानरा (पोटो हो) का फोटो आ गया तो नारा हो, बड़ाय हो का भी तो फोटो आ सकता था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उसका कारण यह था की अंग्रेजों ने कड़िया डिबर बानरा ( पोटो हो) को खोजने के लिए स्केच का सहारा लिया, जानकार लोगों से उसका स्केच बनाकर बालडिया और इर्द-गिर्द गांव में चिपका कर जिंदा या मुर्दा पकड़ने वाले को इनाम की घोषणा की गई हो लोग ‘पोटोवा कन हो (हो में) कह कर संबोधित करते थे, तो अंग्रेजों ने उसे ‘पोटो हो’ के रूप में दस्तावेजों में अंकित किया। और असली नाम कड़िया डिबर बानरा इस नकली नाम के सामने गुमनाम हो गया। यह अत्यंत ही दुर्भाग्य कि बात है कि न तो इतिहासकारों ने और न ही अभी के आदिवासी शोध संस्थान टी आर आई रांची ने इसकी सत्यता को जांचने की कोशिश की, सिर्फ हो लोगों के इतिहास को जबरन तोड़ने मरोड़ने का ही काम कर रही है।

रुद्राक्ष का माला और माथे पर लाल टीका  पर आपत्ति : मुकेश

बिरूआ नें कहा कि पोटो हो के गले में रुद्राक्ष का माला और माथे पर लाल टीका  हमारे हो’ संस्कृति का हिस्सा नहीं है। ये हमारी संस्कृति को हिन्दुकरण करने की साज़िश है। बोय हो’कूदादा का फोटो हो’आदिवासियों का पहला फोटो था, जिसे 1865 में क्लिक किया गया था, थोमस सैमसन के द्वारा। पोटो हो, नारा हो आदि को पकड़ने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने स्केच बना कर गाँव गाँव में चस्पा लगाया गया था। तो जो भी फोटो अभी उपयोग में लाया जा रहा है, उसमें आपत्ति है।

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