नेतन्याहू की राह

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छठवीं बार इजराइल की सत्ता संभालने वाले बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। सरकार ने जैसे ही कानूनी प्रवाधानों में बदलाव का संकेत दिया, वैसे ही नागरिक समुदाय रास्ते पर उतर आया है।

इजराइल के लोगों का मानना है कि नेतन्याहू की सरकार अति दक्षिणपंथी है तथा वह हर हाल में अल्पसंख्यकों को परेशान करने की कोशिश कर रही है।

उनका दावा है कि नेतन्याहू लगातार यही कोशिश कर रहे हैं कि अरब मूल के लोगों को परेशान किया जाए। इसके लिए कानून में संशोधन का जो प्रस्ताव पेश किया गया है उसके विरुद्ध लोगों ने नारेबाजी शुरू कर दी है।

प्रदर्शन करने वालों की मांग है कि इस कानूनी पचड़े को लागू नहीं किया जाना चाहिए तथा लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की दिशा में काम होना चाहिए।

लोगों का आरोप है कि नेतन्याहू की सरकार कानूनी संशोधन के जरिए अदालती शक्ति को कम करके सरकारी ताकत बढ़ाना चाह रही है। इससे देश में तानाशाही बढ़ेगी और लोकतंत्र कमजोर होगा।

इजराइल में रह रहे यहूदी और अरब समुदाय के वामपंथी विचार वाले लोग लगातार सरकारी मंशा का विरोध कर रहे हैं।

सनद रहे कि छठवीं बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले नेतन्याहू ने कहा था कि उनकी सरकार मूल रूप से तीन कामों पर ध्यान देगी। इनमें सबसे अहम होगा ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना।

इसके अलावा मुस्लिम जगत के अन्य दूसरे देशों के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाते हुए नेतन्याहू चाहते हैं कि इजराइल की सुरक्षा को और मुकम्मल किया जाए।

लेकिन देश की सुरक्षा को और मजबूत करने की कोशिश में जुटे प्रधानमंत्री के लिए यह सब कर पाना बहुत सहज इसलिए नहीं हैं क्योंकि खुद नेतन्याहू पर भी 2019 में भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं।

समझा जाता है कि इन आरोपों से खुद को बरी कराने तथा अपनी ताकत तो असीम करने की दिशा में ही उनकी सरकार विधि व्यवस्था में बदलाव की सोच रही है।

तेलअवीव और आसपास के इलाकों की आबादी सोच रही है कि अरब देशों के साथ लंबे समय तक जंग लड़ने का कोई मतलब नहीं रह गया है। इजराइल को आजाद हुए आज तकरीबन 74 साल हो गए।

अब लोग चाहते हैं कि अरब समुदाय के साथ ही यहूदी समुदाय के लोग भी सह-अस्तित्व की भावना के साथ शांति से रहें।

लेकिन ईरान को परमाणु हथिय़ारों से दूर रखने की सोच के कायल नेतन्याहू अभी किस ओर जाएंगे तथा घरेलू मोर्चे पर कौन से परिवर्तन करेंगे-यह फिलहाल तय नहीं है।

वैसे भी यही लग रहा है कि दुनिया के ज्यादातर नेता अपनी कुर्सी को स्थायी बनाने की दौड़ में शामिल हो चुके हैं। इस दौड़ में नेतन्याहू को भी शामिल देखा जा रहा है।

लेकिन ईरान से दुश्मनी के साथ ही घरेलू मोर्चे पर अपनों का विरोध शायद नेतन्याहू के लिए शुभ नहीं होगा। बदलती दुनिया तथा रोजाना बनते नए समीकरणों से इजराइल को भी सीखने की जरूरत है।

अपनी ताकत को खुद की रक्षा के लिए बढ़ाया जाय, इसमें कोई दोष नहीं है लेकिन दूसरे को दबाने के लिए और वह भी किसी तीसरे के इशारे पर किये गये शक्ति प्रदर्शन को सही नहीं कहा जा सकता।

ईरान पर नजरदारी से पहले इजराइल घरेलू समस्याओं से निपटे तो ज्यादा बेहतर होगा।

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