शुक्रिया

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कल रात मेरे ख्वाबों में आने का शुक्रिया

वादा वफ़ा का ऐसे निभाने का शुक्रिया

 

चेहरे का नूर बढ़ गया, रौनक सी छा गई

महफ़िल सजा के मुझको बुलाने का शुक्रिया

 

तुम लिख रहे हो अपनी मुहब्बत की दास्ताँ

ये राज, मुझको आज बताने का शुक्रिया

 

तन्हाई, दर्द, सिसकियाँ, आहों में ढालकर

ऐ दोस्त, मेरी कब्र सजाने का शुक्रिया

 

गुमसुम सी तीरगी थी अंधेरा था चार सू

उल्फ़त की शम्मा दिल में जलाने का शुक्रिया

 

कितना कराओगी मेरी जां मुझको इन्तिज़ार

अब तो कुबूल कर लो, दीवाने का शुक्रिया

-रेणु त्रिवेदी मिश्रा