जुबान पर ताले का फरमान

देश की आजादी के बाद से भारत को चलाने के लिए एक संविधान की रचना की गई है। हर सरकार संविधान के अनुसार ही जनता के वोटों से चुनकर आती है और पूरे पांच साल तक जनता की सेवा का व्रत पूरा करती है। इसमें कई बार देखा गया है कि चुनी हुई सरकारों के नुमाइंदे यह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में जनता की राय ही सर्वोपरि होती है। इसे भूलकर ही शासक अपना राजदंड जनता पर चलाया करते हैं।

कुछ फैसले जनता के हितों के लिए किए जाते हैं और कुछ अपनी पार्टी, अपने समर्थकों या अपनी बिरादरी को मदद करने के लिए भी लिए जाते हैं। इससे समाज का एक वर्ग शासक दल से असंतुष्ट हो जाता है जो बाद के चुनाव में उस सरकार के पतन का कारण बन जाता है।

इसी संविधान ने देश के नागरिकों को बोलने की आजादी दी है। इस आजादी का प्रयोग करके ही नागरिक सरकार के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार किया करते हैं। लेकिन कुछ सरकारें किसी की बात नहीं सुनतीं। इससे समाज में विश्रृंखला की सृष्टि होती है।

वोट देकर किसी भी सरकार को सत्ता तक पहुंचाने का अधिकार तो जनता को है मगर किसी नालायक सरकार को सत्ता से हटाने का अधिकार उसे हासिल नहीं है। ऐसे में लोगों के रोष की शिकार जब सरकार बनती है तो वह तिलमिला जाती है और अनापशनाप फैसले लेने लगती है। ऐसा ही एक फैसला उत्तरप्रदेश की योगी सरकार के हवाले से लिया जा रहा है, जिसकी निंदा पूरे देश में हो रही है।

समाज के दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए योगी की सरकार ने बुलडोजर का सहारा लिया है। जो कानून नही मान रहे हैं, उनके मकानों पर बुलडोजर चलाने के फैसले से लोगों ने राहत की सांस ली है। लेकिन इससे किसी निरीह का नुकसान हो जाए अथवा यदि किसी कमजोर की जान चली जाए तो उसकी निंदा भी की जानी चाहिए।

यही वजह है कि बुलडोजर से घर ढहाने के दौरान एक मां-बेटी की कुचलकर मौत होने की घटना की निंदा हो रही है। इस पर एक भोजपुरी गायिका ने गीत गाया है जो व्यंग्यात्मक शैली में ही यूपी में का बा का संदेश दे रहा है। उस गीत से तमतमाए उत्तरप्रदेश प्रशासन ने गायिका को तीन दिनों को भीतर नोटिस देकर कारण बताने की धौंस दे डाली है। इसे कतई मंजूर नहीं किया जा सकता।

समाज में हो रही बुराइयों का विरोध करने का सबको हक है, मगर एक संयमित दायरे में रहकर। उस गायिका ने अगर राज्य सरकार की कारगुजारियों पर निशाना साधा है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे देशद्रोही करार दिया जाए। इस तरह दबाव बनाकर अगर लोगों की जुबान बंद की जाती रही तो लोकतंत्र में बोलने की आजादी पर पाबंदी लग जाएगी।

आजकल देखा यही जा रहा है कि जो भी सरकारें देश में चल रही हैं, उनकी आमतौर पर यही आदत हो चुकी है कि हर हाल में वे लोगों की जुबान बंद करने पर आमादा हैं अथवा अपने विरोधियों को सबक सिखाने की कोशिश में लगी रहती हैं। यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

उत्तर प्रदेश की सरकार को भी इस मामले में संयम से काम लेने की जरूरत है और इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि प्रशंसा और निंदा- दोनों शासकों को ही प्राप्य होती हैं। बौखलाहट में किसी की जुबान पर ताले जड़ देना स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं है।

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