लगता है कि कांग्रेस जिस तेजी से लोकसभा चुनाव की ओर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही है, उसी तेजी से कुछ लोग इसकी नींव कमजोर करने की साजिश रच दिया करते हैं। एक ओर राहुल गांधी ने फिर से भारत को जोड़ने और न्याय दिलाने के संकल्प के साथ न्याय यात्रा शुरू की है तो दूसरी ओर राहुल के युवा ब्रिगेड के अनन्य सहयोगी रहे मिलिन्द देवड़ा ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया है। ज्ञात रहे कि मिलिन्द उन नेताओं में से रहे हैं जिन्हें लेकर कांग्रेस की नई पीढ़ी काफी उत्साहित रहा करती थी।
सबसे कम उम्र में संसद पहुंचने वाले मिलिन्द ने अपने पिता की विरासत को साथ लेकर चलना शुरू किया था तथा 2004 में राहुल गांधी की टीम में जिन युवा नेताओं ने खुद का नाम दर्ज कराया था, उनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा मिलिन्द देवड़ा, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद और सचिन पायलट प्रमुख थे। लेकिन आज के हालात बदल चुके हैं। आज केवल सचिन पायलट के अलावा पूरी टीम ने ही कांग्रेस से दूरी बना ली है।
न्याय यात्रा करने वाली कांग्रेस एक ओर पूरे देश को साथ लेकर चलने की बात कर रही है, प्यार बांटने का दावा कर रही है और दूसरी ओर अपने पुराने सिपाहियों को भी अपने से दूर किए दे रही है। इसका आम जनता पर क्या असर होगा तथा खासकर युवा मतदाताओं में इन घटनाओं के आलोक में क्या सोच पनपेगी-इस पर भी विचार करने की जरूरत है।
दरअसल बहुत पहले से ही आरोप लगते रहे हैं कि कांग्रेस आलाकमान तक किसी बात को पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। यहां तक कि सांगठनिक मसलों को लेकर भी यदि कोई शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की कोशिश करता तो उसे कई बार दिल्ली में लंबे समय तक इंतजार करने के बाद वापस खाली हाथ लौट आना पड़ता था।
यहां तक कि असम के मौजूदा मुख्यमंत्री (पूर्व कांग्रेसी नेता) हेमंत बिस्वाशर्मा ने भी कांग्रेस को अलविदा कहने से पहले यही आरोप लगाया था कि राहुल गांधी से मुलाकात के लिए दिल्ली गए थे मगर राहुल ने उनकी बातों पर गौर नहीं किया।
मतलब यह कि कांग्रेस नेतृत्व पर कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। सवाल केवल लापरवाही से जुड़े रहे हैं। आम कांग्रेस जनों की भी शिकायत कुछ ऐसी ही रही है। ऐसे में यदि भाजपा का विकल्प बनने की कहीं सोच कांग्रेस में पनप रही है तो यह बेहद जरूरी है कि पहले अपने मौजूदा कुनबे को बिखरने से सहेजा जाए।
इसके साथ ही कांग्रेस के पुराने थिंक टैंक को दुरुस्त करने के साथ कार्यकर्ताओं से सीधा संबंध बनाने की किसी तकनीक पर भी विचार करना होगा। राहुल गांधी से देश के युवाओं को काफी उम्मीदें हैं। देश जोड़ने या भाजपा का विकल्प बनने का सपना तबतक साकार नहीं हो सकता जबतक संगठन में जान न फूंक दी जाए।
जरूरी यह भी है कि कांग्रेस सेवादल को फिर से ताकतवर बनाया जाए और जनता से जुड़े मुद्दों पर काम करने की खुली छूट युवाओं को दी जाए। देश पर लंबे समय तक शासन कर चुकी भारत की वयोवृद्ध पार्टी से लोगों का एक-एक कर मोह भंग होना भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। ध्यान रहे कि लोकतंत्र में विपक्ष का भी ताकतवर होना काफी मायने रखता है।