आत्म प्रशंसा की जल्दबाजी

ताजा घटना में यूनेस्को की ओर से कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के हाथों तैयार किए गए विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान विश्वभारती या शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर घोषित किया गया है। विश्व धरोहर घोषित की गई जगहों पर बाकायदा यूनेस्को की ओर से फलक लगाए जाते हैं जिसमें किस वजह से किसी स्थान को विश्व धरोहर करार दिया गया है, इसका उल्लेख रहता है।

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संस्कृत भाषा से लोगों ने भले ही आज दूरी बना ली है लेकिन कुछ उक्तियां आज भी उतनी ही समसामयिक व प्रासंगिक हैं जितनी तब थीं, जब उन्हें लिखा या गढ़ा गया होगा। कहा गया है-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशोबलम्।।

अर्थात अपने बुजुर्गों की सेवा कभी बेकार नहीं जाती। उससे चार चीजों में हमेशा बढ़त होती रहती है। यहां आशय यह है कि अपने बुजुर्गों या पूर्वजों का सम्मान करके खुद ही सम्मानित हुआ जा सकता है क्योंकि आप की भावी पीढ़ियां आपसे ही सीखती हैं। यदि बुजुर्गों का सम्मान वर्तमान पीढ़ी करती है तो भावी पीढ़ी उसे देख रही होती है और भविष्य में वह भी वैसा ही आचरण करने की कोशिश करती है।

लीक से हटकर व्यवहार

यही है जीवन चक्र जिसमें किसी को किसी से व्यवहार की कला सीखने के लिए किसी कक्षा की जरूरत नहीं होती, किसी से ट्यूशन लेने की जरूरत नहीं पड़ती। अपनी पिछली पीढ़ी से ही लोग सीखा करते हैं। लेकिन वर्तमान पीढ़ी जब लीक से हटकर व्यवहार करती है तो शायद वह भूल जाती है कि उसे भी एक दिन गैरपरंपरागत व्यवहार से ही लोग विभूषित करेंगे, उसे भी वही मिलेगा जो उसने समाज को दिया है।

ताजा घटना में यूनेस्को की ओर से कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर के हाथों तैयार किए गए विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान विश्वभारती या शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर घोषित किया गया है। विश्व धरोहर घोषित की गई जगहों पर बाकायदा यूनेस्को की ओर से फलक लगाए जाते हैं जिसमें किस वजह से किसी स्थान को विश्व धरोहर करार दिया गया है, इसका उल्लेख रहता है।

रवींद्रनाथ का नाम ही गायब

पश्चिम बंगाल के बोलपुर जिले में शांतिनिकेतन को भी चूंकि विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया है, लिहाजा यहां भी एक फलक लगना स्वाभाविक है। लेकिन हैरत की बात है कि विश्वविद्यालय प्रबंधन की ओर से लगाए गए फलक में विश्वभारती के आचार्य के रूप में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और उपाचार्य का नाम तो मौजूद है, लेकिन रवींद्रनाथ का नाम ही गायब है।

राज्य सरकार और तमाम शिक्षा प्रेमियों की आपत्ति के बाद विश्वविद्यालय की ओर से सफाई दी गई है। सफाई भी कुछ ऐसी जिससे हंसी आती है। दलील दी गई है कि यूनेस्को की ओर से अभी कोई फलक नहीं लगा है। फिलहाल लोगों की जानकारी के लिए एक अस्थाई फलक लगा दिया गया है, जिसमें टैगोर का नाम छूट गया है। लेकिन इस सफाई से देश का बुद्धिजीवी समुदाय दुखी है।

प्रबंधन के साथ जमीन का विवाद

तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। लोगों का कहना है कि यदि इस मामले में विरोध नहीं किया गया होता तो शायद इतनी-सी सफाई भी कोई नहीं देने आता। स्मरण रहे कि विश्वभारती का नाम इन दिनों तब से सुर्खियों में आया है जब से नोबेल जयी अमर्त्य सेन का विश्वविद्यालय प्रबंधन के साथ जमीन का विवाद शुरू हुआ है।

प्रचलित प्रथा के मुताबिक इस विश्वविद्यालय के पदेन आचार्य भारत के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन लगता है कि प्रबंधन ने स्वयं की प्रशंसा बटोरने के चक्कर में ही बुजुर्गों (यहां रवीन्द्रनाथ) की अनदेखी कर दी है। ऐसा होना नहीं चाहिए था। गीतांजलि के रचयिता के साथ ऐसा व्यवहार देश के हर शुभ बुद्धि संपन्न नागरिक को नापसंद होगा। इस कुकृत्य पर प्रबंधन को सफाई देने के बजाय खेद जताना चाहिए था। यह दुखद है।