सोशल ही बने रहें तो बेहतर

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सोशल मीडिया भी कमाल का है। खबर और सूचना के पार्थक्य की दीवार इतनी पतली कर दी गई है कि आम लोग यह समझ ही नहीं पा रहे कि किसे खबर कहें और किसे सूचना। कुछ ऐसे भी शरारती तत्व हैं जिन्हें हर बात में किसी न किसी तरह की शरारत सूझती है। इन्हें शायद इस बात का एहसास भी नहीं है कि भारत की सोच हमेशा से वसुधैव कुटुंबकम वाली रही है, जहां के लोग अपने पड़ोसी के दर्द से दुखी होते रहे हैं। भारतीयता के इस तानेबाने से खेलने वाले लोग सोशल मीडिया के जरिए सामाजिक संबंधों को तार-तार कर रहे हैं। अफसोस की बात है कि भारत सरकार ने इसके लिए एक खास तंत्र भी विकसित किया है लेकिन वह तंत्र तबतक कारगर नहीं हो सकता जबतक लोगों को जागरूक नहीं किया जाता।

मिसाल के लिए अभी बालासोर में हुई ट्रेन दुर्घटना को ही लिया जा सकता है। इस हादसे में सैकड़ों लोगों की जान गई। लोग अपने परिजनों की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। जिनके घरों के दीये बुझ गये उनके आंसू नहीं थम रहे हैं। फिर भी कुछ लोगों को सोशल मीडिया पर मजाक करने की पड़ी है। सोशल मीडिया के जरिए खबर फैलाई गई है कि धोनी और विराट कोहली ने इस हादसे से पीड़ित परिवारों की आर्थिक मदद की है। बाद में खुद धोनी और विराट को ही सामना आना पड़ा सफाई के लिए। उन दोनों का दावा है कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। जाहिर है कि जिन लोगों ने ऐसी भ्रामक खबरें फैलाईं हैं, उनका कोई निजी स्वार्थ रहा होगा। आखिर क्यों। इस तरह की खबरें सोशल मीडिया पर परोसने की जरूरत क्या है।

देश जिस दर्द को झेल रहा है, विदेशों से भी भारत में हुए इस हादसे पर दुःख जताया जा रहा है, उस हादसे को तमाशा बनाने की सोच के पीछे आखिर क्या मकसद है। जानबूझकर खिलाड़ियों का नाम इसमें घसीटने का ही क्या अर्थ है। खिलाड़ियों की बातें अगर छोड़ भी दी जाएं तो एक वर्ग ऐसा भी है जो इस हादसे को सांप्रदायिक रंग में रंगने की कोशिश कर रहा है। पूछा जा सकता है कि सांप्रदायिकता का जहर हादसे के जरिए परोसने की क्या जरूरत है। ऐसे लोगों का मकसद केवल काल्पनिक जानकारी को वाइरल करने का ही नहीं है, बल्कि समाज में एक से दूसरे को लड़ाने का भी है। इसकी जितनी भी निंदा की जाए- वह कम कही जाएगी।

सोशल मीडिया का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। इंटरनेट के जरिए कई ऐसे काम सेकेंडों में किये जा सकते हैं जिन्हें पूरा करने में महीने लग जाया करते थे। लेकिन इसका प्रयोग सही दिशा में किया जाना जरूरी है। और सही प्रयोग करने के लिए जरूरी है कि पहले नागरिकों को सचेत बनाया जाए। केवल लाइक या शेयर करने के लिए कोई विचार अगर सोशल मीडिया पर लाया जा रहा है तो इसे घिनौनी सोच कहा जाएगा। कानूनन लोगों को सचेत करने के साथ ही समाज को भी आगे आना होगा। अगर किसी के पास इस तरह की भ्रामक खबरें पहुंचाई जाती हैं तो पहले उनकी सच्चाई जान लेने की जरूरत है। आनन-फानन में किसी भी जानकारी को शेयर करने की आदत से परहेज नहीं किया तो समाज में अजीबोगरीब हालात पैदा हो सकते हैं। लोगों का एक-दूसरे पर भरोसा कम होने लगेगा। अपेक्षा यही रहेगी कि सोशल मीडिया का प्रयोग किया जाए, मगर सावधानी से।