2022 के बाद अब 2023 का आगाज हो चुका है। तारीख जरूर बदली है, हालात लगभग वही हैं। ऐसे में पूरी दुनिया इस बात की उम्मीद लगाए बैठी है कि तनाव कम हो, आर्थिक मंदी समाप्त हो, लोगों को अमन से जीने का माहौल मिले और तरक्की हो।
लेकिन जबतक हम जंग और अमन के बीच की खाई को पाटने में सक्षम नहीं हो जाते, जबतक दूसरों के हक छीनकर अपने लिए सुख खोजने की ललक रखने वाले लोगों को इंसानियत की राह पर नहीं लाया जाता- तबतक तरक्की की बात बेमानी होगी।
मिसाल के तौर पर रूस और यूक्रेन की मौजूदा जंग को लिया जा सकता है। एक तरफ रूस है जिसे हर हाल में यूक्रेन पर जीत दर्ज करने की धुन सवार है तो दूसरी ओर यूक्रेन के पीछे खड़ा अमेरिका है जो नेटो देशों के नाम पर रूस के खिलाफ छद्म-युद्ध लड़ रहा है।
दोनों में कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। नेटो की आड़ में अमेरिका जानबूझकर रूस को परेशान कर रहा है और रूस लगातार युद्ध में फँसता जा रहा है।
जंग जितनी लंबी चलेगी, हालात उतने तेजी से बिगड़ेंगे। युद्ध जबरन थोपने का आरोप लगाकर रूस के खिलाफ अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका भी असर बाजार पर देखने को मिल रहा है।
एक ओर पेट्रोलियम पदार्थों की कमी से बाजार में हाहाकार है तो दूसरी ओर यूक्रेन में खेती प्रभावित होने से खाद्यान्न का अभाव हो रहा है। अनाज के अभाव का असर भारत समेत एशिया के कई देशों में दिखने भी लगा है।
ऐसे में यूक्रेन की ओर से जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत के प्रधानमंत्री से इस मसले पर बीचबचाव करने का जो आग्रह किया गया है, वह भी कम रहस्यजनक नहीं है।
बीचबचाव और जंग रोकने की कोशिशों में यूक्रेन की ओर से बाकायदा कई शर्तें लादी गई हैं। खुद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से यूक्रेनी सरकार ने कहा है कि शर्तों को मानने के लिए भारत अब रूस को मनाए।
यह भी कहा गया है कि यूक्रेन के जिस किसी भी हिस्से पर रूस ने अबतक दखल किया है, उसे छोड़ कर वापस जाए। ऐसी-ऐसी शर्तें रखी जा रही हैं जिन्हें कबूल करना पुतिन जैसे नेता के लिए कतई संभव नहीं है। होना तो यह चाहिए कि पहले पुतिन और जेलेंस्की ही तय करें कि वे आगे किस मंजिल की ओर जाना चाहते हैं। उन्हें आखिर हासिल क्या करना है।
वैसे दोनों ही मुल्कों को यह बात समझ लेनी चाहिए कि जंग से कभी भी किसी मसले का समाधान नहीं हो सका है। ऐसे में एक-दूसरे के खिलाफ शह और मात की बाजी खेलना या घात-भितरघात का खेल खेलना बंद किया जाना चाहिए। इसमें अमेरिका को भी समझदारी से काम करने की जरूरत पड़ेगी।
नेटो में शामिल होने की जिद पर अड़े जेलेंस्की और हर हाल में यूक्रेन को मटियामेट करने पर तुले पुतिन को तीसरी शक्ति के जरिए ही बातचीत का रास्ता खोलना होगा। पहले तुर्की के जरिए बात की गई और अब भारत के जरिए प्रयास किया जा रहा है।
लेकिन भारत को इस मामले में सतर्क रहना होगा। बीचबचाव की कोशिश का नतीजा केवल तभी आ सकता है जब दोनों पक्ष सचमुच अमन चाहते हों। इस जंग और अमन के बीच खड़ी दुनिया के सामने आज चुनौती है कि वह चाहती क्या है।
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