बंगाल में इंडिया गठबंधन में टूट के बाद भाजपा ने बढ़ाया टारगेट

 इन मुद्दों के दम पर रखा 35 सीटें जीतने का लक्ष्य

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कोलकाता, सूत्रकार : लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल के लिए 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पाने के लिए बीजेपी राज्य की ममता सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दों पर लगातार घेर रही है। पार्टी अब भ्रष्टाचार के साथ-साथ अयोध्या में राम मंदिर और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) जैसे भावनात्मक विषयों पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है। दरअसल बीजेपी तृणमूल कांग्रेस के इंडिया ब्लॉक से अलग होकर चुनाव लड़ने के फैसले से उत्साहित है।

इस कदम ने भगवा खेमे के भीतर टीएमसी विरोधी वोटों को एकजुट करने की उम्मीदें बढ़ा दी हैं। 2014 में बंगाल में जहां बीजेपी का मत प्रतिशत 17 फीसदी था वो 2019 में बढ़कर 40 फीसदी हो गया, जिसके परिणामस्वरूप बीजेपी को राज्य 18 लोकसभा सीटों पर जीत मिली। पार्टी को 2021 के विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था और उसके बाद हुए आंतरिक कलह तथा उप चुनाव में भी सफलता नहीं मिली थी। तब से ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को भुनाने की भाजपा की कोशिशें विफल रही हैं।

बीजेपी नेताओं ने बताया भावात्मक मुद्दा

42 लोकसभा सीटों में से 35 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ, भाजपा अब राम मंदिर और सीएए जैसे भावनात्मक मुद्दों के भरोसे आगे बढ़ रही है। भाजपा की राज्य महासचिव अग्निमित्रा पॉल ने बताया कि राम मंदिर का उद्घाटन और सीएए का कार्यान्वयन दोनों पार्टी के मुख्य मुद्दे हैं। दोनों मुद्दे भावनात्मक हैं, और लोग इससे जुड़ सकते हैं। राम मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा का जिक्र करते हुए भाजपा सांसद और पूर्व राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष ने इन मुद्दों की भावनात्मक अपील को रेखांकित किया। उन्होंने हिंदू मतदाताओं को एकजुट करने और विशेष रूप से मतुआ समुदाय के बीच शरणार्थी चिंताओं पर जोर दिया। घोष ने कहा कि सीएए लागू करने के वादे ने भाजपा की चुनावी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

मतुआ समुदाय पर नजर

2015 से 2021 तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में काम करने वाले घोष ने कहा कि राम मंदिर मुद्दे ने पहले भी भाजपा को फायदा पहुंचाया है और इस बार भी फायदा मिलेगा। इससे हमें बंगाल सहित देश भर में हिंदुओं को एकजुट करने में मदद मिलेगी। राज्य में बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग रहते हैं, जो राज्य की अनुसूचित जाति आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत के विभाजन के बाद 1950 के दशक से पूर्वी पाकिस्तान, अब बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मतुआ समुदाय के लोग भागकर पश्चिम बंगाल आ गए।

मतुआ समुदाय के मतों पर हर दल की नजर रहती है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के वादों के वादों को लेकर मतुआ समुदाय ने 2019 में बीजेपी के पक्ष में एकजुट होकर मतदान किया था। 2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अधिनियमित सीएए,31 दिसंबर 2014 से पहले बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत में आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध से, पारसी और ईसाइयों सहित सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करता है।

आपको बता दें कि बंगाल चुनाव में मतुआ समुदाय का रोल बेहद अहम रहा है। बंगाल की कुल अनुसूचित जाति में करीब 50 फीसदी मतुआ समुदाय है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बंगाल में अनुसूचित जाति 23.51 फीसदी है। इसमें 50 फीसदी मतुआ मतदाता हैं। ये बंगाल की 70 विधानसभा सीटों पर असर रखते हैं। यही वजह है कि हर दल मतुआ समुदाय को साधने की कोशिश कर रहा है।

क्यों है बीजेपी को भरोसा

लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने की खबरों के बीच केंद्रीय मंत्री और मतुआ नेता शांतनु ठाकुर ने हाल ही में कहा था कि सीएए जल्द ही लागू किया जाएगा। राज्य में चुनाव जीतने के लिए भाजपा द्वारा राम मंदिर और सीएए का सहारा लेने के मुद्दे पर बीजेपी नेताओं ने कहा कि यह संगठनात्मक चुनौतियों की स्वीकार्यता को दर्शाता है।

एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने बताया कि यह लोकसभा चुनाव है, इसलिए विधानसभा चुनाव के उलट, टीएमसी की बंगाली उप-राष्ट्रवाद की पिच हमारी धार को कुंद नहीं कर पाएगी। टीएमसी ने ‘बंगाली गौरव’ को हवा दी है और 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की पहचान की राजनीति का मुकाबला करने के लिए उप-राष्ट्रवाद का एक चुनावी नारा तैयार किया है। पार्टी ने यह भी बताया कि टीएमसी द्वारा अकेले लड़ने के फैसले से बीजेपी को फायदा मिलेगा।

टीएमसी बोली ध्रुवीकरण नहीं हो सकेगा

बीजेपी नेता बताया कि 2019 में पश्चिम बंगाल में वाम और कांग्रेस गठबंधन टूटने के बाद चतुष्कोणीय मुकाबला हुआ और राज्य में टीएमसी विरोधी वोटों का पूरा हिस्सा बीजेपी को मिला। इस बार भी, हमें उम्मीद है कि वाम-कांग्रेस गठबंधन से हमें सबसे ज्यादा फायदा होगा। वहीं, तृणमूल कांग्रेस मतदाताओं से अपनी अपील को लेकर आश्वस्त है और भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को अप्रभावी बताकर खारिज कर रही है।

टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि बंगाल में बीजेपी की विभाजनकारी रणनीति को विफल करने के लिए मतदाता ममता बनर्जी का समर्थन करेंगे। राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने सुझाव दिया कि भावनात्मक मुद्दों पर भाजपा की निर्भरता उसकी संगठनात्मक कमजोरियों से पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि राम मंदिर, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और सीएए जैसे मुद्दे बंगाल में आगामी लोकसभा चुनावों में ध्रुवीकरण और प्रति-ध्रुवीकरण के साथ हावी रहेंगे।