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संपादकीय

बिल्ली के दाँत

एक बात अपने यहां लोग बड़ी चाव से कहा करते हैं। बिल्ली के दाँत गिने ही नहीं और चल दिए शेर के मुंह में हाथ डालने। ये महज एक कहावत ही है। लेकिन सचमुच अगर कोई ऐसा ही…

ख्वाब देखने की बीमारी

इंसान हर हाल में नए-नए ख्वाब देखने का आदी होता है। और वह भी अगर नेता हुआ तो फिर पूछना क्या है। हर नेता अपने दल की बड़ाई करता फिरता है और दुनिया की हर बुराई उसे दूसरे…

नये युग की नई चुनौती

युगों में जैसे-जैसे परिवर्तन होता जाता है, इंसानी फितरत और सहूलियतें भी अपने आप बदलती रहती हैं। अभी कोई ढाई-तीन दशक पहले तक इस बात की कल्पना भी नहीं कर पाता था कि…

वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

वैदिकी से लोकतंत्र का संबंध शायद लोगों को अटपटा लगे, मगर वैदिक सोच से ही लोक संस्कृति की उत्पत्ति होती है। वैदिक शब्द का अनर्थ न हो अथवा कोई दूसरा मतलब नहीं निकालना…

अपराध से खेलने वाले

समाज में अक्सर देखा जाता है कि गोली से खेलने वाले का अंत भी कहीं न कहीं गोली से ही होता है, बशर्ते कि खेलने वाला असावधान हो। लेकिन खिलाड़ी जानबूझकर गोली-गोली खेलने…

काश, ऐसा हो पाता!

दुनिया में अक्सर कई बार देखा गया है कि समाज के कुछ नियमों का बदलाव किया जाता है, बाद में जब पता चलता है कि ऐसे बदलावों से काम नहीं चलने वाला है तो फिर से उन बदलावों…

राज्यपाल पर सवाल

आजाद भारत में ऐसा कई बार हो चुका है कि किसी प्रदेश की सरकार अगर केंद्र में शासक दल के विरुद्ध हुई तो उस राज्य में राज्यपाल को लेकर हंगामा तय है। आरोप यही लगते हैं कि…

विपक्ष की अगली बैठक

केंद्र की एनडीए सरकार को घेरने की तैयारी होने लगी है। इस क्रम में पटना में विपक्षी नेताओं की एक बैठक हुई। बैठक में एकजुटता का नारा सुना गया और लालू द्वारा राहुल…

 विकल्प तलाशने का वक्त

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबसे जरूरी होता है कानून का शासन। और कानून का राज कायम करने के लिए संविधान ने जो नियम तय किए हैं, उनका अनुसरण किया जाता है। लेकिन…