सूत्रकार, शिखा झा
रांची :लोक आस्था का महापर्व चैती छठ की शुरुआत नहाय खाये के साथ आज यानी 25 मार्च से शुरू हो गया है। 26 मार्च को खरना पूजा होगी, तो वहीं 27 मार्च को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 28 मार्य को उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर पारण किया जाएगा। जैसा कि आप सब जानते है की साल भर में 2 बार छठ मनाया जाता है। मार्च या अप्रैल के महीने में चैती छठ और दूसरा कार्तिक मास अक्टूबर या नवंबर में मनाया जाता है। देश के कई हिस्सों में इस पर्व को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। खासकर बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश में इस लोक आस्था के महापर्व को बड़े ही आस्था के साथ मनाते हैं।
सूर्य अर्ध्य अर्पित करने का शुभ मुहूर्त:
27 मार्च को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा और 28 मार्य को उदयमान सूर्य को अर्ध्य अर्पित कर पारण किया जाएगा..
27 मार्च को शाम के अर्ध्य के लिए 5.30 बजे व 28 मार्च को सुबह के अर्ध्य के लिए 5.55 बजे का मुहूर्त शुभ माना गया है।
पंचांग के अनुसार
चैत्र मास में करने वाले छठ व्रत को चैती छठ कहा जाता है। पंचांग के अनुसार, यह चैत्र मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह चार दिनों का एक महान पर्व है जहां पहले दिन की शुरुआत नहाए खाए से होती है। इस तरह से आस्था का महापर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है। यह पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। इसमें महिलाएं लगभग 36 घंटे का लंबा व्रत करती हैं, इसलिए यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है।
चैत्र छठ का क्या है महत्व :
शास्त्रों के अनुसार छठी माता भगवान सूर्य की मानस बहन हैं। इसलिए छठ के व्रत में छठी मईया और सूर्यदेव की पूजा करने का विधान है। यह व्रत महिलाओं के द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए किया जाता है। मान्यता के अनुसार छठी मईया संतान की रक्षा करती हैं। सूर्यदेव की उपासना से आरोग्यता प्राप्त होती है। छठ पूजा में भगवान सूर्य देव की पूजा का विधान है। संध्या अर्घ्य के दिन भगवान सूर्य को अस्त होते हुए अर्घ्य दिया जाता है। वहीं, अगले दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
ध्यान रखने वाली बातें :
छठ व्रत में साफ सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है। नहाय खाय के दिन पूरे घर की सफाई की जाती है और स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है, चने की सब्जी, चावल साग खाया जाता है और अगले दिन खरना से व्रत आरंभ हो जाता है।26 मार्च 2023 दिन रविवार को पंचमी तिथि को लोहंडा या खरना किया जाएगा। इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ वाली खीर का प्रसाद बनाकर सूर्य देव की पूजा करने के बाद यह प्रसाद खाया जाता है, इसके बाद छठ के समापन के बाद व्रत का पारणा किया जाता है।