राकेश पाण्डेय
कोलकाता: इन दिनों राज्य में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। इतनी ठंड हो और लोग गर्म कपड़े न खरीदें, ऐसा हो नहीं सकता है।
इसको देखते हुए महानगर में गर्म कपड़े बेचने वाले व्यापारियों ने गर्म कपड़े तो लाए लेकिन वह बिक नहीं रहे। गर्म कपड़े बेचने वाले व्यापारी इस बार दोहरी मार झेल रहे हैं।
एक तो इस साल ठंड देर से पड़ी और दूसरी खरीदारों के पास पैसे नदारद हैं। कोरोना के कारण देश भर में बेरोजगारी की समस्या है और जिनके पास रोजगार है, वे भी चाह रहे हैं कि कम से कम खर्च हो।
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बहरहाल यह देखा जा रहा है कि पैसे की मार से इस बार गर्म कपड़े का बाजार बेजार हो गया है। कपड़े की दुकानों पर सन्नाटा होने के कारण दुकानदार निराश नजर आ रहे हैं।
यही कारण है कि इस सप्ताह कड़ाके की सर्दी पड़ने के बावजूद गर्म कपड़ों का बाजार उम्मीद के अनुसार गर्म नहीं हो पाया। व्यापारियों को पूंजी फंसने की चिंता सताने लगी है।
नवंबर के मध्य से दुकानों में ऊनी कपड़े सजने लगते हैं। लेकिन इस वर्ष पूरे दिसंबर तथा जनवरी के पहले सप्ताह में भी गर्म कपड़ों की अधिक मांग न होने पर दुकानदारों के चेहरे मुरझाए हुए हैं। पिछले वर्ष भी बिक्री कम होने के कारण व्यापारी नुकसान उठा चुके हैं।
खरीदारी के लिए रुपये कहां बचेः
व्यापारी मोहम्मद गुलजार ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बार बिक्री काफी कम है। इसका कारण समय से ठंड न पड़ना है और उससे भी बड़ी बात यह है कि लोगों के पास रुपये नहीं है कि वे खरीदारी करें। पता नहीं आखिर कब तक कोरोना की मार झेलनी पड़ेगी।
बाजार नरम
मोहम्मद वाहिद ने बताया कि इस साल ज्यादा ठंड न पड़ने से गर्म कपड़ों का बाजार प्रभावित है। स्वेटर, जैकेट तो दूर मफलर, टोपी तक कम बिक रही है।
बीते सालों में 15 दिसंबर के बाद फिर स्टॉक मंगाना पड़ता था, लेकिन इस बार तो पहला स्टॉक निकल जाए, यही मुश्किल लगता है। इस बार अभी तक 30 से 40 फीसद ही कारोबार हुआ है।
जनवरी में कम होती है
मोहम्मद नाजिर ने बताया कि पहले ठंड पड़ी ही नहीं और जब शुरू हुई तो जनवरी का महीना आ गया। जनवरी में वैसे भी गर्म कपड़ों की बिक्री कम होती है। नवंबर-दिसंबर में ठंड पड़ती तो बिक्री में तेजी आती और उसका लाभ भी हमें मिलता। अगर देखा जाए तो मिला जुला बाजार रहा।
झेलनी पड़ी दोहरी मारः
मोहम्मद आमीर ने कहा कि दो वर्ष तो कोरोना ने मारा, इस वर्ष ठंड ने मार दिया। इस बार तो उम्मीद ही नहीं थी कि ठंड पड़ेगी। ठंड जब शुरू हुई तो फिर से एक बार कोरोना के नए वेरिएंट्स का भय हो गया।
जो लोग गर्म कपड़े खरीदना चाहते थे, वे भय के कारण रुपये को खर्च करने से बच रहे हैं।
मजबूरी यह है कि इन्सान पहले पहले पेट की आग बुझाए या तन ढंके। कुल मिलाकर गर्म कपड़ों के सौदागर इस साल भी कुछ कुदरत की कारस्तानी और कुछ इंसानी मजबूरियों के आगे परेशान दिखे।