-अशोक पांडेय
(त्वरित समीक्षा)
सारे कयास धरे रह गए, एक्जिटिया-विद्वानों की वाणी फेल हो गई, भारत बनाम इंडिया की लड़ाई फिलहाल थम गई और चल गया एक बार फिर मोदी का जादू।
कुछ बुद्धिमानों का तर्क होगा कि यदि मोदी मैजिक है तो कर्नाटक में कहां गया। सवाल तर्कसंगत है। जवाब है सनातन। जादू शायद मोदी का कम चला, इंडिया गठबंधन का ज्यादा चला। सत्ता में आने पर सनातन को ही प्रतिबंधित करने की बात ने मोदी मैजिक को और मजबूत कर दिया।
प्रसंगवश स्वामी विवेकानंद का नाम याद आता है जिन्होंने कहा था कि पश्चिमी दुनिया के लोगों पर यदि टैक्स लाद दिया जाए तो बल्वा हो जाता है, जबकि पूरब में (भारत) धर्म की पताका लहराती है। समाज यहां धर्म को ही धारण करता है। शायद इस बात को इंडिया गठबंधन नहीं समझ सका। इससे अलग सीधे मोदी को पनौती (अपशकुन) करार देना भी शायद काम कर गया। यही वजह रही कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश ने भी कांग्रेस को नकार दिया। गहलोत बनाम पायलट की कहानी भी कहीं न कहीं राजस्थान में कांग्रेस की हार की वजह बनी है।
अब इंडिया पर सवाल
राज्यों के चुनावी नतीजों से लोकसभा चुनाव के पहले गठित हुए इंडिय़ा गठबंधन का भविष्य भी खतरे में पड़ गया है। क्षेत्रीय दलों का कांग्रेस पर दबाव बढ़ेगा, सीटों के तालमेल पर विवाद होंगे और कांग्रेस को चालू पार्टी कहने वाले अखिलेश सरीखे नेता नए सिरे से सीना तानेंगे।
हार की समीक्षा
आम चुनाव से पहले कांग्रेस को हार की समीक्षा करनी होगी तथा मृतप्राय अपने गण-संगठनों जैसे युवा कांग्रेस, सेवा दल, इंटक या छात्र यूनियनों को मजबूत करने की जरूरत होगी। पार्टी के थिंक टैंक में बदलाव पर भी सोचना पड़ेगा क्योंकि मोदी मैजिक से लड़ने के लिए खुद भी पहले सांगठनिक रूप से मजबूत होना जरूरी होगा। जीत का जश्न मनाने के बजाए भाजपा ने खुद को लोकसभा चुनाव की तैयारी में झोंक दिया है। मोदी को पनौती बताने वालों को पहले खुद की समीक्षा करनी होगी। फिलहाल इस सियासी मैच में भाजपा तीन-एक से जीत चुकी है। शायद यह सनातन की ताकत है, जिसे कैंसर कहा गया!