दान पर घमासान
भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में मानव अंगों की खरीद-बिक्री पर रोक लगी हुई है। लेकिन किसी की जान जा रही है तो उसके परिवार के लोगों में या किसी करीबी मित्र में से कोई अंग दान जरूर कर सकता है। फिर भी जिस तेजी से अंग प्रत्यारोपण के मामले बढ़े हैं, उनमें अब इस बात पर भी ज्यादा जोर नहीं दिया जाता है कि अंगदाता किसी मरीज का क्या लगता है।
भारतीय संस्कृति में दान देने की परंपरा बहुत पुरानी रही है। पौराणिक काल से ही तमाम ग्रंथों में दान के महत्व को समझाने की कोशिश की जाती रही है। लेकिन कभी यह दान भी अपराध के साथ जुड़ जाएगा अथवा इंसान कभी दान को भी कारोबार बना लेगा-शायद इसकी कल्पना तब के लोगों ने नहीं की होगी। इस दान का नाम है अंगदान। आजकल तेजी से भारत में अंगदान की परंपरा चल पड़ी है। खुद सरकार की ओर से भी इसे बढ़ाने की कोशिशों पर बल देने को कहा जा रहा है। लेकिन अंगदान के पीछे अब तरह-तरह के गोरखधंधे शुरू हो गए हैं जिससे अंगदान का नाम आते ही किसी घपले की संभावना दिमाग में कौंधने लगती है।
कमाने का जरिया
आमतौर पर अपने यहां किसी सड़क हादसे में या किसी अन्य दुर्घटनाजनित कारणों से किसी का ब्रेन डेथ होने पर मृतक के परिजनों की राय से मरने वाले के अंगों को किसी बीमार के शरीर में प्रत्यारोपित या ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। प्रत्यारोपण की यह क्रिया बहुत जटिल हुआ करती है जो किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही संभव है। मकसद यह है कि किसी मरने वाले के अंगों की मदद से किसी बीमार को नई जिंदगी हासिल हो जाती है। लेकिन आजकल इसे भी कमाने का जरिया बना लिया गया है।
हाल ही में पता चला था कि नेपाल के कुछ गरीब लोगों को कोलकाता लाकर उनके अंगों को दूर देश से आए मरीजों में प्रत्यारोपित किया जाता था। इस पर जब सरकार की नजर पड़ी तो फिलहाल ऐसे काम चोरी-छिपे किए जा रहे हैं। कुछ यही हाल दिल्ली का भी है जहां के बारे में कहा जाता है कि म्यांमार से गरीब लोगों को या मरीजों को दिल्ली लाकर उनके अंगों को प्रत्यारोपण किया जा रहा है।
अंगों की खरीद-बिक्री पर रोक
ज्ञात रहे कि भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में मानव अंगों की खरीद-बिक्री पर रोक लगी हुई है। लेकिन किसी की जान जा रही है तो उसके परिवार के लोगों में या किसी करीबी मित्र में से कोई अंग दान जरूर कर सकता है। फिर भी जिस तेजी से अंग प्रत्यारोपण के मामले बढ़े हैं, उनमें अब इस बात पर भी ज्यादा जोर नहीं दिया जाता है कि अंगदाता किसी मरीज का क्या लगता है। यहां तक कि मध्य एशिया या पश्चिम एशिया अथवा अफ्रीकी देशों के लोग भी भारत में अंग प्रत्यारोपण का खर्च दूसरे देशों की तुलना में कम जानकर यहां इलाज के लिए चले आ रहे हैं, जिसे आज मेडिकल टूरिज्म का नाम दिया गया है।
ध्यान देने की बात यह है कि सरकारी महकमे की तुलना में निजी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा और ज्यादा देखी जा सकती है। ऐसे अस्पतालों में तरह-तरह की अत्याधुनिक मशीनों के साथ ही विशेषज्ञ डॉक्टर भी मौजूद हैं जो नियमों को ताक पर रखकर लगातार अपना काम कर रहे हैं। इस तरह भले ही किसी को लगता है कि मेडिकल टूरिज्म से विदेशों का पैसा भारत में आ रहा है लेकिन इसके दूसरे पहलू को भी जानना जरूरी है।
इससे जहां देशी डॉक्टरों में कानून का डर खत्म हो रहा है वहीं अंगों के सौदागरों का बाजार भी तेजी से फैल रहा है। मानव अंगों का कारोबार एक नए किस्म का बिजनेस बनता जा रहा है। इस पर यदि सरकार की ओर से कठोर कदम नहीं उठाए गए तो नतीजा बहुत बुरा होने वाला है। तंगहाल लोग अंग बेचने-खरीदने पर आमादा हो जाएंगे और व्यवस्था दम तोड़ देगी। सरकार इस पर ध्यान दे।