राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की मांग

राजस्थानी प्रचारिणी सभा व राजस्थान सूचना केंद्र की साझा पहल

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कोलकाता: आज अंतराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस है। हम लोग पिछले 25 सालों से इसे राजस्थानी भाषा दिवस के रूप में इसे मना रहे हैं। इस कार्यक्रम के द्वारा हम लोग राजस्थान सरकार से राजस्थानी को राजकीय भाषा, केंद्र सरकार से संवैधानिक भाषा और बंगाल की सरकार से राजस्थानी भाषा के लिए अलग से शिक्षण संस्थान खोलने की मांग कर रहे हैं। उक्त मांगें राजस्थानी प्रचारिणी सभा और राजस्थान सूचना केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे रतन शाह ने रखीं।

इस कार्यक्रम में सभी वक्ताओं ने राजस्थानी भाषा की समृद्धि पर अपनी बाते कहीं और एक स्वर से राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की मांग दोहराई। अभी तक राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलने से इस भाषा का बहुत अहित हुआ है। इस कार्यक्रम में रतन शाह, हिंगराज रत्नू और प्रह्लाद राय गोयनका, सर्वश्री घनश्याम सोभासरिया, राजेंद्र केडिया, बंशीधर शर्मा, महावीर बजाज व शशि लाहोटी ने हिस्सा लिया।

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इस मौके पर राजेंद्र केडिया ने कहा कि राजस्थानी की पहचान खत्म होती जा रही है। जरूरी है कि हर कोई अपने व्यवहार में भाषा का प्रयोग करे। घनश्याम शोभासरिया ने कहा कि जो मारवाड़ी हिंदी या अंग्रेजी में बातें करते हैं, उन्हें भी अपनी भाषा में बातें करनी चाहिए। बंशीधर शर्मा ने कहा कि भाषा बहुत जरूरी है। यह समाज की पहचान है। भाषा समृद्ध तो समाज भी समृद्ध होगा। राजस्थानी से निकली गुजराती समृद्ध हुई पर राजस्थानी नहीं, क्यों? ये सोचने की बात है। राजस्थान सूचना केंद्र के उप निदेशक हिंगलराज रतनू ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भाषा प्रेमी हैं। अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के सचिव संजय हरलालका ने कहा कि हर कोई अपनी अपनी भाषा में समारोहों के कार्ड छपवाता है, केवल मारवाड़ी ऐसा नहीं करते, क्यों? लेकिन भाषा को बचाने के लिए ऐसा करना अब जरूरी हो गया। आज पढ़ने की प्रवृति खत्म होती जा रही है। शादी ब्याह समेत सारे समारोह के कार्ड अपनी भाषा में होनी चाहिए।

इस दौरान राजस्थानी प्रचारिणी सभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रह्लाद राय गोयनका ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा के अलावा और भी भाषाओं को सीखने पर ध्यान देना चाहिए। हमारे पास राजस्थानी के अलावा, हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला भाषा सीखने का भी मौका है। मगर उन्होंने राजस्थानी भाषा की प्रशंसा में कहा कि यह भाषा धान की फसल जैसी है, जहां कहीं भी फेंको उग आती है। राजस्थानी हर जगह अपना वजूद बना लेगी।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार अगर राजस्थानी भाषा को मान्यता देती है तो ठीक है नहीं तो हमारी भाषा वैसे भी बहुत समृद्ध है, जो किसी मान्यता की मोहताज नहीं है। इन शब्दों में भाषा के प्रति अवहेलना का दर्द इस सभा में मौजूद सभी लोग कर रहे थे। बहरहाल, संकेत दिया गया है कि राजस्थानी भाषा को इसकी पहचान दिलाने और इसे इसके असली मुकाम तक पहुंचाने की लड़ाई को एक सकारात्मक दिशा दी जाएगी और जरूरत पड़ी तो वृहद भाषा आंदोलन का भी सूत्रपात किया जाएगा।