देवघर : बाबा मंदिर के पंचसूल दर्शन मात्र से ही मिलते हैं कई सुख

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ब्यूरो रांची : भगवान भोलेनाथ व माता पार्वती को अर्पित सावन का महीना अभी चल रहा है. शिवजी की आराधना का यह महापर्व 4 जुलाई से शुरू हुआ था. वही इस वर्ष सावन 58 दिनों का है यानी शिवजी की पूजा-पाठ और भक्ति के लिए सावन का महीना दो माह का है. सावन का यह पवित्र महीना 31 अगस्त तक चलेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं. ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में रहता है. तो चलिए आज हम आपको झारखण्ड के वैद्यनाथ मन्दिर के बारे में बताते है. झारखण्ड राज्य के देवघर स्‍थान में अवस्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है.

शिव का एक नाम ‘वैद्यनाथ भी है, इस कारण लोग इसे ‘वैद्यनाथ धाम’ भी कहते हैं. यह एक सिद्धपीठ है. इस कारण इस लिंग को “कामना लिंग” भी कहा जाता हैं. बता दे कि 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है देवघर स्थित बैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिंग, इसकी कई विशेषताएं हैं. जो इसे अन्य अन्य ज्योतिर्लिंगों का महत्वपूर्ण बनाता है. यहां भोले नाथ के मंदिर पर पंचशूल है. जबकि महादेव के मंदिर पर आम तौर पर त्रिशूल होता है. जानकारी अनुसार देवघर के तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि भगवान भोलेनाथ पंचेश्वर है. यह पंचशूल शिव मंत्र पंचाक्षर का प्रतीक है.

उन्होंने बताया कि पंचशूल पांच तत्वों का प्रतिक माना गया है. इनमें क्षितिज, जल, पावन, गगन, समीरा शामिल है. सभी तत्वों से मिलकर यह पंचशूल बना है. वहीं यह तंत्र क्षेत्र रहने के कारण पंचशूल लगाया गया है. इसके साथ ही भगवान शिव को पंचानंद भी कहा जाता है. यह पंचशूल उन्हीं पंचानन्द का प्रतीक है.जानकारी अनुसार लंकापति रावण ने अपने गुरु शुक्राचार्य से पंचवक़्त्रम निर्माण की विद्या सीखी थी. इसी कारण रावण ने लंका के चारों ओर पंचशूल लगाया था. पंच शूल लगाने से रावण की शक्ति बढ़ गई और भगवान राम को भी प्रास्त करने में मुश्किल हुआ.

बाद में अगस्त मुनि में पंचशूल ध्वस्त करने का विधि बताया. रावण ने उसी पंचशूल को बाबा बैजनाथ मंदिर के शीर्ष पर लगाया था कि मंदिर को कोई क्षति न पहुंचे. देवघर के बाबा मंदिर में सावन के महीने में अस्पर्श पूजा बंद कर अर्घा लगा दिया जाता है. लेकिन देवघर में स्पर्श पूजा का महत्व है. धार्मिक जानकारों के अनुसार यह बताया गया है कि जो भी श्रद्धालु देवघर बाबा मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्चना नहीं कर पाते हैं. उनके द्वारा पंचशूल के दर्शन मात्र से ही सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. इसके साथ ही देवघर के जिस जगह से पंचशूल का दर्शन हो जाए. समझ लीजिए भगवान शिव का दर्शन हो गया. वहीं देवघर के भगवान शिव के मंदिर के शीर्ष पर लगे पंचशूल को तंत्र विद्या से भी जोड़ा गया है.

 

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