आज भी रोटी, कपड़ा और मकान के लिए जूझते मजदूर

1 मई को पूरी दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जाता है

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अंकित कुमार सिन्हा

कोलकाता। 1 मई को पूरी दुनिया में मजदूर दिवस मनाया जाता है। सभी को छुट्टियां दी जाती हैं। लेकिन इस छुट्टी के पीछे लम्बा और ऐतिहासिक संघर्ष रहा है। दरअसल, इस पूरे संघर्ष की शुरूआत 1 मई 1886 को अमेरिका में शुरू हुई थी। इस आंदोलन में अमेरिका के मजदूर सड़कों पर आ गए थे और वो अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने लगे। इस पूरे आंदोलन का कारण था कि मजदूरों से दिन के 15-15 घंटे काम लिया जाता था। इस हड़ताल के समय शिकागो की हे मार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने श्रमिकों पर गोली चला दी और सात श्रमिक मार दिए। वहीं 100 से ज्यादा श्रमिक घायल हो गए। इस आंदोलन के तीन साल बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक हुई। जिसमे तय हुआ कि हर मजदूर से केवल दिन के 8 घंटे ही काम लिया जाएगा।

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अमेरिका में भले ही 1 मई 1889 को मजदूर दिवस मनाने का प्रस्ताव आ गया हो। लेकिन भारत में ये आया करीब 34 साल बाद। भारत में 1 मई 1923 को चेन्नई से मजदूर दिवस मनाने की शुरूआत हुई। लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की अध्यक्षता में ये फैसला किया गया। इस बैठक को कई सारे संगठन और सोशलिस्ट पार्टी का समर्थन मिला। जो मजदूरों पर हो रहे अत्याचारों और शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। इसका नेतृत्व कर रहे थे वामपंथी।

क्या है मजदूर दिवस का उद्देश्य

1 मई को हर साल मजदूर दिवस मनाने का उद्देश्य मजदूरों और श्रमिकों की उपलब्धियों का सम्मान करना और योगदान को याद करना है। इसके साथ ही मजदूरों के हक और अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करना और शोषण को रोकना है। इस दिन बहुत सारे संगठनों में कर्मचारियों को एक दिन की छुट्टी दी जाती है। लेकिन अब प्रश्न उठता है कि मजदूरों की स्थिति में कितना बदलाव आया है- तब में और अब में । जवाब है नहीं। देश में मजदूरों को मजबूर बनाने का खेल जारी है। देश विकास के पथ पर एक कदम आगे की ओर बढ़ तो गया है, किन्तु देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने वाले मेहनतकश अभी भी आर्थिक विपन्नता में जी रहे हैं। अर्थात वे विकास की इस चकाचौंध में जरा भी सहज महसूस नहीं कर पा रहे हैं।

गरीबी, बेरोज़गारी, विकल्पहीनता, पलायन, पीड़ा, आत्महत्या, अंतर्द्वंद्व, लूट-खसोट, भ्रष्टाचार, चुनौतियाँ, भूमण्डलीकरण, अस्तित्व-संकट, संघर्ष ये सभी अलग-अलग शब्द जरूर हैं लेकिन किसी एक वर्ग पर ये पूरा शब्द फिट बैठता है तो वह है मजदूर वर्ग। जी हां, वही मजदूर वर्ग जिसके बिना सब चीज अधूरा है।  दूसरे के सपने को बुनने वाला मजदूर खुद के सपने कहां पूरा कर पाता है। अधूरे ख्वाब और ज्यादा मेहनत के बोझ तले एक मजदूर का जीवन खत्म हो जाता है। कमोबेश सभी मजदूरों की यही कहानी है।