किसानों को सता रही है सुखाड़ की आशंका, खेतों में बीज तक नहीं बोये हैं किसान
जून-जुलाई में हुई महज 144 मिमी बारिश औसतन वषार्पात है 540 मिमी
खूंटी : आषाढ़ और सावन के एक सप्ताह गुजर जाने के बाद भी अब तक भरपर बारिश नहीं होने के कारण खूंटी सहित लगभग पूरे झारखंड में सुखाड़ की आशंका गहराती जा रही है। वैसे तो जलवायु परिवर्तन दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का यह नतीजा है। असमय वर्षा, तूफान, सूखा और मौसम में बदलाव इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। झाड़फूक सालों पहले खूंटी में जून-जुलाई के महीने में 540 मिलीमीटर औसतन बारिश होती होती थी, वहीं खूंटी, रांची सहित अन्य जिलों में इस साल जून-जुलाई में अब तक सिर्फ 144 मिमी वर्षा हुई है।
इस संबंध में कृषिा विज्ञान केंद्र के मौसम वैज्ञानिक डॉ राजन चौधरी कहते हैं कि झारखंड यह खतरनाक संकेत है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि हम मनुष्य चेत नहीं रहे। घने जंगलों को खत्म कर दिया, पहाड़ों को नष्ट कर दिया, उन पर कब्जा कर घर बना लिया। डॉ चौधरी ने कहा कि नदियां इतनी प्रदूषित हो गयी हैं कि उनमें मछलियां नहीं मिलती। अब रंग-.बिरंगे पक्षी नहीं दिखते। उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर अंधाधुंध बड़े पेड़ काट दिये गये। वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले कार्बनडाइक्साइड की मात्र तेजी से बढ़ी है।
पॉलीथिन के प्रयोग ने खेतों को लगभग बंजर बना दिया है। डॉ चौधरी ने बताया कि 1956 से 2015 के बीच के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में वार्षिक वषार्पात में कोई कमी नहीं आयी है, लेकिन यह वर्षा अनियमित हो रही है। अर्थात मानसून के दौरान कम बारिश, प्री मॉनसून और पोस्ट मॉनसून में भी कमी आयी है। गर्मी के दिनों में कभी इसी खूंटी में 100-120 मिमी तक बारिश होती थी।
अब यह बारिश घट कर 40-45 मिमी तक हो गई है। आंकड़े बताते हैं कि 1991 से 2014 के बीच रांची सहित खूंटी में प्रतिवर्ष करीब छह फीसदी की दर से बारिश बढ़ी है। बारिश का समय बदल गया है। जलवायु परिवर्तन का असर यह है कि जब फसल को पानी की जरूरत होती हैं, वर्षा नहीं होती। जब पानी के अभाव में फसल सूख जाती है, तब बारिश होती है। ऐसे कई ऐसे संकेत हैं, जिससे यह कहा जा सकता है कि जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। ठंड, बारिश और गर्मी बढ़ रही है, लेकिन सब कुछ अनियमित हो रहा है। सबसे व्यापक असर कृषि पर पड़ रहा है। जब बारिश होनी चाहिए, नहीं हो रही है।
कम अवधि और कम पानी वाली फसल लगायें : मौसम वैज्ञानिक डॉ चौधरी किसानों को सलाह दिया कि ऊपरी खेतों में वर्षा की अनियमितता को देखते हुए कम अवधि एवं कम पानी की आवश्यकता वाली फसल जैसे – अरहर, उड़द, मडुआ, ज्वार आदि की खेती को प्राथमिकता दें, जो किसान ऊपरी खेतों में धान, मकई, या मूंगफली की खेती करना चाहते हैं, वे अंतर्वर्तीय खेती करें, क्योंकि अनियमित वर्षा की स्थिति में यदि एक फसल मारी जाती है, तो दूसरी फसल से कुछ न कुछ उपज मिल जाती है और अनुकूल वर्षा होने पर दोनों ही फसल की अच्छी उपज मिल जाती है।